मैं सरगुजिहा ठंड की करूं आज क्या बात, दिन भी अब घायल करे, कातिल लगती रात नववर्ष पर हिंदी साहित्य भारती की सरस काव्य संध्या का आयोजन


अंबिकापुर। हिन्दी साहित्य भारती ने नगर के पॉलीटेक्निक कॉलेज़ में प्राचार्य डॉ.आरजे पांडेय की अध्यक्षता में सरस काव्य-संध्या का आयोजन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्था के प्रदेशाध्यक्ष बलदाऊ राम साहू और विशिष्ट अतिथि प्रदेश महामंत्री व प्राचार्य डॉ.सुनीता मिश्रा, अजय चतुर्वेदी, मीना वर्मा व रामसेवक गुप्ता थे। काव्य गोष्ठी में दोहाकार मुकुंदलाल साहू ने सरगुजिहा ठंड का सजीव चित्रण किया। उन्होंने कहा ‘कांप रहे हैं ठंड से आज हमारे हाड़, गांव, शहर, कस्बे सभी, नाले, नदी, पहाड़। मैं सरगुजिहा ठंड की करूं आज क्या बात? दिन भी अब घायल करे, कातिल लगती रात।Ó गोष्ठी का शुभारंभ मां भारती की पूजा पश्चात वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से हुआ। बलदाऊ राम साहू ने कहा कवियों को साहित्य-सृजन राष्ट्र-निर्माण के लिए करना चाहिए क्योंकि राष्ट्र ही हमारी पहचान है। देशहित हमारे चिंतन का आधार हो। साथ ही समकालीनता का ध्यान कवि-लेखकों को रखना होगा क्योंकि समकालीन साहित्य ही सम्मान पाता है। कबीर, तुलसी, प्रेमचंद आदि महान साहित्यकारों के लेखन में समकालीनता दृष्टिगोचर होती है इसीलिए वे आज भी प्रासंगिक हैं। कुछ लोग देश की परंपरा, रीति-रिवाजों, एकता और अखंडता को तोडऩा चाहते हैं। ऐसी ताकतों से साहित्यकारों को लडऩा होगा। मां और मातृभूमि का सम्मान करना सभी का कर्तव्य है।
डॉ.सुनीता मिश्रा ने हिंदी साहित्य भारती को एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था बताते हुए कहा कि यह संस्था विश्व के 30 देशों में संचालित है और अपना कार्य पूरी ईमानदारी व निष्ठा से कर रही है। भारत के प्राचीन वैभव की परिकल्पना को साकार करना, देश को फिर से विश्वगुरु का दर्जा दिलाना, पाश्चात्य संस्कृति को हराकर भारतीय संस्कृति की ओर लोगों को लौटाना व अतीत-वर्तमान का अभिनंदन करना संस्था का प्रमुख उद्देश्य हैं। प्राचार्य डॉ.आरजे पांडेय ने राजनीति के कारण कवियों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाने की बात कही और तकनीकी शिक्षा व चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई हिंदी में करने संबंधी शासकीय प्रयासों व तैयारियों की जानकारी दी। संस्था के जिला अध्यक्ष रंजीत सारथी ने हिंदी को पूरे देश में जन-जन की भाषा बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की। काव्यगोष्ठी में कवियों ने कई शानदार रचनाएं पढ़ी। चर्चित नगमानिगार पूनम दुबे ने हिंदी भाषा को मधुशाला की उपमा प्रदान की। नववर्ष पर माधुरी जायसवाल ने रचना पाठ किया। अजय चतुर्वेदी ने यह ढलता सूरज कह रहा है बीते वर्ष की अमिट कहानियां, गजलकार मनव्वर अशरफी ने वतन से इश्क़ का गुमान रखते हैं, हर वक्त हथेली पर जान रखते हैं। लहराते तिरंगे पर नाज है हमको, हम अपने दिल में हिंदुस्तान रखते हैं। जाने-माने कवि डॉ.सपन सिन्हा ने सदा उपकार करते हैं, कभी नफरत नहीं करते, जिनके हाथों में सूरज हो, अंधेरों से नहीं डरते, अनिता मंदिलवार ‘सपनाÓ ने करोगे न जब तक जतन रास्ते में, तो कैसे खिलेंगे सुमन रास्ते में, शशिकांत दुबे ने चाह जलेगी जब तक, तेल रहेगा दीये में, बाहर निकल, कब तक पड़ा रहेगा कुएं में। मंशा शुक्ला ने चलो ज्ञान का दीप मिलकर जलाएं, अज्ञान तमस का जगत से मिटाएं। कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक ने दुश्मनों की नींद उड़ाने वीर युवाओं आओ तुम, हाथों में तलवार उठाओ, शब्दबाण बरसाओ तुम जैसी रचनाओं से श्रोताओं में जोश, उमंग और उत्साह का संचार किया। वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने मधुर स्वर में गणेश-वंदना-त्रास हो ना हा्रस हो हे गण्ेाश देवा, राष्ट्र का विकास हो, गीतकार रंजीत सारथी ने महामाया मां कृपा करो, तुम बिन हमारा कौन है? तुम ही माता, तुम ही पिता, तुम ही बंधु तुम ही सखा, तुम ही पालनहारा हो सुनाकर जगत जननी मां के प्रति अनन्य भक्ति व निष्ठा का इजहार किया। अंबरीष कश्यप ने बस पढ़ाई है और लिखाई है, यही दौलत मेरी कमाई है, चंद्रभूषण मिश्र ‘मृगांकÓ ने मुझे कुछ नहीं चाहिए साहस का एक संयम ही दे दो, टूटकर बिखर रहा हूं, अपना आलिंगन ही दे दो, आनंद सिंह यादव ने बिकती है ना ख़ुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता है, लोग गलतफहमी में हैं कि शायद कहीं मरहम बिकता है, कवि देवेन्द्रनाथ दुबे ने जिसकी निंदिया जितनी प्यारी, उतने प्यारे ख्वाब, अपने हिस्से आ बैठे हैं-कागज, कलम, दवात, कवयित्री मीना वर्मा ने औरत क्यों रोती है? क्या वह घुट-घुट कर जीती है? पीती है कड़वी घूंट विषधर की तरह, ना लीलती है, ना उगलती है, दुर्ग से पधारे बदलाऊ राम साहू ने दो बालगीत, वरिष्ठ कवयित्री डॉ. सुनीता मिश्रा ने कुछ खोई हूं, कुछ पाई हूं जीवन की इन राहों में, ऐसे में बोलो फिर कैसे मधुवाणी दूं चाहों में सुनाकर लोगों को भाव-विभोर कर दिया।

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