भारत की एकता, साहस, आकांक्षाओं का प्रतीक तिरंगा-अंचल सिन्हा


राष्ट्रीय ध्वज दिवस पर तिरंगा के इतिहास पर संसद में निर्मित वृत्तचित्र का प्रदर्शन

अंबिकापुर। विश्व में प्रत्येक राष्ट्र का अपना-अपना राष्ट्रीय ध्वज है, जो मर्यादा और अस्मिता से जुड़ा होता है, लेकिन इस मायने में भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा अन्य राष्ट्र ध्वजों के मुकाबले कई विशेषताएं धारण किए हुए है।

क्योंकि अंग्रेजों से भारत को मिली आजादी के चंद दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान भारतीय तिरंगे को देश में अधिकारिक रूप से अपनाया था, इसलिए भारत में प्रतिवर्ष 22 जुलाई को राष्ट्रीय ध्वज दिवस मनाया जाता है।

अधिकारिक रूप से तिरंगे को अपनाने के बाद से यह देश की एकता, साहस और अखंडता का प्रतीक बन गया है। राष्ट्रीय ध्वज दिवस भारत की संप्रभु राष्ट्र बनने की यात्रा को स्मरण करता है।

हमारा ध्वज न केवल राष्ट्रीय एकता, अखंडता, गरिमा, गौरव, शक्ति, आदर्श और आकांक्षाओं का प्रतीक है बल्कि समस्त विश्व के त्याग की भावना एवं शांति का संदेश भी देता है। यह हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है, क्योंकि आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को एकजुट करने में इसकी बहुत आम भूमिका रही।

क्रांतिकारियों के लिए राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान अपने प्राणों से भी बढ़कर होता था इसलिए अंग्रेजों की लाठियां व गलियां खाते हुए भी इसे कभी झुकने नहीं दिया। उक्ताशय के विचार अंचल कुमार सिन्हा ने सेजेस केशवपुर में राष्ट्रीय ध्वज दिवस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि तीन रंगों की पत्तियों वाले राष्ट्रीय ध्वज के सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी त्याग, बल और पौरुष का प्रतीक है, जबकि बीच वाली पट्टी सफेद शांति और सत्य का और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी हरियाली, समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक है।

झंडे के बीचों-बीच सफेद पट्टी में स्थित गहरे नीले रंग का अशोक चक्र आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। 24 तीली वाला अशोक चक्र देश के प्रगति, राष्ट्र के कानून और धर्म के पहिए का प्रतीक है।

संस्था की शिक्षिका संस्कृति श्रीवास्तव ने बच्चों में तिरंगा के सम्मान पर व्याख्यान दिया। राष्ट्र ध्वज के सफर पर प्रकाश डालते हुए कक्षा सातवीं की छात्रा कुमारी सानिया ने बताया कि इसका सफर सात अगस्त 1906 में प्रारंभ हुआ था।

सबसे पहले कोलकाता के पारसी बागान में इसे फहराया गया था। उस समय ध्वज पर ऊपर की हरी पट्टी पर एक ही पंक्ति में सफेद रंग के 8 कमल अंकित थे, जबकि बीच वाली पीली पट्टी पर देवनागरी में गहरी नीले रंग से वंदे मातरम लिखा था।

नीचे की लाल पट्टी पर बांई ओर एक सफेद सूर्य और दांई ओर एक-एक सफेद चंद्रमा और तारा अंकित था।1921 में विजयवाड़ा के कांग्रेस अधिवेशन में आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकया नामक क्रांतिकारी युवक ने महात्मा गांधी को यह ध्वज भेंट किया, जिसमें लाल व हरे रंग की केवल दो पट्टियां थी, लेकिन पंजाब के बुजुर्ग नेता रायजादा पंडित हंसराज ने गांधीजी को सुझाव दिया कि बीच में सफेद को अंकित कर दिया जाए।

कार्यक्रम के दौरान 1924 में इस झंडे के लिए लिखे गए गीत ‘विश्व विजय तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा का बच्चों द्वारा सामूहिक गान प्रस्तुत किया गया। राष्ट्रीय ध्वज के स्वरूप पर लगातार चर्चा चलती रही और 1931 में वर्तमान स्वरुप को स्वीकार किया। कार्यक्रम के दौरान संस्था प्राचार्य द्वय मालती शाक्य और संतोष साहू ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की सफलता में संस्था के अधिकारी-कर्मचारी का सहयोग सराहनीय था।

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