अम्बिकापुर/छत्तीसगढ़ में 15 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में सीधे 15 सीटों पर पहुंच गई थी। बताया जा रहा था कि लगातार शासन-सत्ता में रहने के बाद ऊपरी स्तर के नेता जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं दे रहे थे जिससे कार्यकर्ताओं में काफी नाराज़गी थी।
2018 में कांग्रेस सत्ता में तो पहुंची लेकिन 70 से अधिक सीटों के बाद भी 2023 के चुनाव में उसका वो हश्र हुआ जिसकी कल्पना स्वयं कांग्रेस के नेता भी नहीं किये थे। यहां भी कांग्रेस को जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी ही ले डूबी।
2023 के चुनाव में जैसे-तैसे कर छ0ग0 की सत्ता में पहुंची भाजपा विष्णुदेव साय के राज में शासन-सत्ता ठीक से चला नहीं पा रही है। अब इसकी वज़ह क्या है ये तो भाजपा के दिल्ली वाले नेता जानें।
जिस राह पर यह सरकार चल निकली है, यदि यही हाल रहा तो अभी से भाजपा के नेता स्वयं कहने लगे हैं कि 2018 में तो 15 सीट मिल गई थी पता नहीं अगले चुनाव में उतना भी मिल पायेगा या नहीं।
सरकार बने दो-तीन महिने बाद एक साल पुरा हो जायेगा। ऐसे में शासन-सत्ता के दौर में पार्टी से लाभ ले कुछ अपनी स्थिति और कुछ क्षेत्र की भी स्थिति सुधारने का आसरा ले बैठे कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों में घोर निराशा है।
पिछले सात-आठ महिने में सरकार ग्रामीण विकास, कृषि, आदिवासी विकास, वन विभाग सहित तमाम तरह के विभागों एवं योजनाओं पर सही ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है जिसके कारण जमीनी स्तर पर छोटे-छोटे विकास कार्यों के लिये भाजपा के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को सोचना पड़ रहा है।
जो कुछ पहुंच वाले नेतागण हैं वे थोड़ा बहुत चाय-नाश्ता का खर्चा ही निकाल भी रहे हैं और वह भी कांग्रेस के शासनकाल में चुनाव के आखिरी महिनों में स्वीकृत कार्यों को अब शासन-सत्ता में हम करेंगे के नाम पर धौंस दिखा कर निपटा रहे हैं।
नई सरकार से जनता को तो छोड़िये पार्टी के कार्यकर्ताओं की जो अपेक्षा थी, सरकार वह भी पुरा नहीं कर पा रही है। महतारी वंदन योजना, 3100 रूपये धान खरीदी जैसी कई योजनाओं ने 7-8 महिने में ही सरकार को दिवालिया बना दिया है।
ऐसे में केन्द्रिय योजनाओं से कुछ राशि आ भी रही है तो मंत्री एवं विभाग स्तर पर उसे ऊपर ही ऊपर निपटाने का प्रयास चल रहा है। जिसकी जानकारी सार्वजनिक होने पर कार्यकर्ताओं सहित जिले के नेताओं में नाराज़गी देखी जा रही है।
अभी हाल ही में एक योजना की राशि केवल एक क्षेत्र विशेष लाने से प्रदेश के कई जिलों के विधायकों एवं जिला स्तर के नेताओं के नाराज़गी का सामना मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को करना पड़ा है। सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने पुरे कार्यों को निरस्त कर सभी जिलों में बांटने के निर्देश दिये हैं।
किन्तु क्या कार्य निरस्त हो पायेगा अथवा जो स्वीकृति मिली है उसी के अनुसार होगी अभी उस पर संशय बरकरार है। बताया जा रहा है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के 275(1) मद के तहत प्राप्त राशि लगभग 25 करोड़ रु केवल बलरामपुर जिले के कार्यों के लिए जारी कर दी गई है।
इस समुचे राशि के बलरामपुर जिले हेतु जारी होने पर अन्य जिलों से शिकायतें मुख्यमंत्री तक पहुंचने लगी है। जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के 275(1) मद में प्रदेश के अन्य अनुसूचित जिलों की अनदेखी से जनप्रतिनिधि सहित जरूरी निर्माण एवं मरम्मत कार्य से वंचित लोगों में भी नाराजगी है।
जिला में आवंटन जारी कर कार्य करने की पुरानी परिपाटी के बजाय अब आयुक्त कार्यालय आदिम जाति विभाग, नया रायपुर से करोड़ों की सामग्री क्रय करने का निविदा और कार्यादेश जारी किया जा रहा है।
बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक जिलों में इस मद से सामग्री प्रदाय करने का कार्य कभी प्रदेश मुख्यालय रायपुर से नहीं किया गया था।
सूत्रों की मानें तो कुछ बिचौलिए एवं सप्लायरों का सिंडिकेट प्रदेश में प्रचलित नियमों को, अपने अनुकूल बनाकर न केवल इस व्यवस्था का लाभ उठा रहा है बल्कि जिला व संभाग में पदासीन विभाग के पदधाकारियों के अधिकारों का माखौल भी उड़ा रहा है।
अब देखना होगा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के 275(1) मद से जारी राशि 25 करोड़ रूपये में सभी अनुसूचित जिलों को जरूरी निर्माण एवं मरम्मत कार्य दिया जायेगा या फिर बलरामपुर जिले के प्रभावी मंत्री अपने ही क्षेत्र के लिये उस राशि को सुरक्षित रखने में कामयाब हो जायेंगे।
जानकारी तो यह भी मिल रही है कि सरगुजा संभाग के भी कई जिलों के प्रभावी एवं निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से इस मामले की शिकायत की है और आदेश की कॉपी सौंपी है। उन्होंने अपने क्षेत्र के आवश्यक निर्माण एवं मरम्मत कार्य का लिस्ट भी सौंप कर कहा है हमें भी कार्य दिया जाये।
देखिये लिस्ट कहां पहुंचा पुरा काम…..