जाते-जाते कांग्रेस की चिंता बढ़ा गये चिंतामणि, भाजपा में की घर वापसी

अम्बिकापुर/कांग्रेस में सामरी से विधायक रहे चिंतामणि महाराज ने आखिरकार भाजपा का दामन थाम लिया है, पार्टी बदलते ही भगवा कोट व गमछे में नज़र आये गहिरा गुरू के पुत्र चिंतामणि महाराज ने कहा कि चाहे कितनी भी बड़े ओहदे पर बैठा दिया जाये, लेकिन यदि मान-सम्मान ही न मिले तो ऐसे जगह पर रहने का कोई फायदा नहीं है, मान-सम्मान भी कुछ होता है। यह केवल टिकट कटना ही नहीं बल्कि कांग्रेस से निष्कासन जैसी स्थिति थी, जिसके कारण संत समाज के लोगों से चर्चा कर भाजपा में सदस्यता ग्रहण कर घर वापसी की है।

हालांकि चिंतामणि महाराज के भाजपा प्रवेश के बाद सरगुजा की राजनीति में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। यह भी कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि चिंतामणि महाराज स्वयं में कोई मास लिडर नहीं है। लेकिन इनके पिता स्व. गहिरा गुरू के अनुवाई सरगुजा के 14 सीट के साथ-साथ रायगढ़ व बिलासपुर जिले के कई सीटों पर हैं। जहां यदि 1000-1500 के वोटों का भी असर हुआ तो यह छत्तीसगढ़ की राजनीति में उठापटक के लिये बड़ी चीज होगी, ऐसे में एक-दो सीटें भी कांग्रेस के पास से खिसकी तो यह भाजपा की राजनीतिक एवं कूटनीति की जीत होगी। यह वहीं छत्तीसगढ़ है जहां पर कई सीटों में जीत व हार का फैसला बहुत मामूली अंतर से होता है। 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में 21 सीटें ऐसी थीं जहां पर जीत व हार का फैसला 3000 वोटों से भी कम में थी कई सीटें तो 500 के कम अंतर से और दो सीटेे तो 100 वोट से भी कम अंतर से जीते गये थे। वहीं 2008 में 2008 में ऐसी 16 सीटें थीं जहां पर जीत व हार का अंतर 3000 वोट से भी कम में हुआ था। जिनमें 5 सीटों पर जीत का अंतर 1000 वोट से भी कम का था। वहीं 2013 में 12 ऐसी सीटें रहीं जहां जीत का आंकड़ा 3000 वोटों से कम का रहा, वहीं 2 सीटों पर जीत का अंतर 1000 से भी कम वोट का रहा। जबकि एक सीट पर 1069 वोट से जीत मिली थी। यहीं हाल 2018 के चुनाव में भी देखा गया, 10 सीटें ऐसी थीं जहां पर 9 सीटें 3000 के नीचे अंतर से जीत वाली थी तो एक सीट पर 3026 वोट से जीत मिली थी, वहीं 2 सीटों पर 1000 से कम वोटों से जीत मिली थी। ऐसी स्थिति में यह कहना की चुनाव को चिंतामणि अथवा उनका संत सनातन समाज प्रभावित नहीं कर सकता कहना सही नहीं होगा।

यदि केवल सामरी सीट की बात करें जहां से चिंतामणि महाराज विधायक हैं तो उस सीट पर कांग्रेस ने शंकरगढ़ ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष विजय पैंकरा को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने पूर्व संसदीय सचिव एवं विधायक सिद्धनाथ पैंकरा की पत्नि को टिकट दिया है। हालांकि मौजुदा स्थिति में दोनों ही बराबरी पर हैं, किन्तु कांग्रेस के लिये मुसिबत यहां भी बढ़ने वाली है, इसका कारण यह है कि सामरी विधानसभा सर्वाधिक भाजपा प्रभावित सीटों में से एक है और यहीं कारण है कि कुसमी, चांदो एवं शंकरगढ़ क्षेत्र से भाजपा सदैव आगे रहती है और कांग्रेस राजपुर में आकर जीत हासिल करती है। अब जबकि राजपुर से कांग्रेस की टिकट के लिये दावेदारी कर रहे लाल साय मिंज को टिकट नहीं दिया गया है तो राजपुर क्षेत्र के कांग्रेसी पदाधिकारीयों एवं कार्यकर्ताओं में थोड़ी नाराज़गी का होना लाज़मी है। यहीं कारण है कि उत्साह पहले की तुलना में कम हुआ है। यहीं नहीं राजपुर क्षेत्र से प्रभा बेला मरकाम एवं बसपा के उम्मीद्वार का चुनावी मैदान में होना कांग्रेस के लिये चिंता की बात है। स्थानीय भाजपा एवं कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि बसपा के प्रत्याशी सहित प्रभा बेला मरकाम एवं अन्य निर्दलीय मिलाकर यदि 10 हजार से ज्यादा वोटों को प्रभावित करते हैं तो कांग्रेस के लिये जीत का रास्ता बंद हो जायेगा। चूंकि विधायक रहते क्षेत्र में खेलों को बढ़ावा देने सिद्धनाथ पैंकरा ने गांवों के फुटबाल एवं क्रिकेट खिलाड़ियों को काफी मदद पहुंचाई थी, वहीं टिकट के दौड़ के दौरान भी लगातार खेल गतिविधियों को ही संचालित कर रहे थे, ऐसे में राजपुर ब्लॉक के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो सकते। बहरहाल यहां पर भाजपा संगठन शांति से घर में सो रहा है और सिद्धनाथ, उद्धेश्वरी और उनकी टीम अपने दम पर काम कर रही है। ऐसे में यदि स्थानीय नेताओं को भरपुर सहयोग नहीं मिला तो रास्ता उद्धेश्वरी के लिये भी आसान नहीं दिखता। यहीं कारण है कि क्षेत्र में इस बात की चर्चा है कि सामरी का सीट बराबरी की टक्कर वाला है। ऐसे में चिंतामणि का भाजपा प्रवेश भी कांग्रेस की चिंता बढ़ाने के लिये काफी है। केवल सामरी सीट भी भाजपा निकाल लेती है तो वहीं भाजपा के चुनावी रणनीति की जीत होगी।

भाजपा प्रवेश के दौरान चिंतामणि ने कुछ बातें बहुत गंभीरता से कही हैं और वे बातें गंभीर हैं भी। चिंतामणी ने टिकट कटने को लेकर जो चिंता व्यक्त की है, वे बेहद गंभीर हैं। अब ये कांग्रेस को समझना है कि वो इन बातों को कितनी गंभीरता से लेती है। कांग्रेस से जाते-जाते चिंतामणि ने कांग्रेस की चिंता बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने अपने टिकट कटने पर सवाल उठाये हैं, उन्होंने सवाल किया है कि लुण्ड्रा, बैकुण्ठपुर एवं अम्बिकापुर में भी मौजुदा विधायकों की स्थिति ठीक नहीं थी, फिर केवल मेरी ही टिकट सर्वें के आधार पर क्यों काटे गये हैं? हालांकि सामरी विधानसभा से चिंतामणि महाराज का टिकट कटना सर्वें से ज्यादा संगठन की नाराज़गी रही है। चिंतामणि ने यह भी सही कहा है कि वे लगातार क्षेत्र में रहे हैं, चुनाव जीतने के बाद लगातार ही क्षेत्र में चिंतामणि महाराज नज़र आते थे। ऐसे में टिकट कटने को लेकर उनके सवाल भी जायज हैं। लेकिन अम्बिकापुर, लुण्ड्रा एवं बैकुण्ठपुर को लेकर उन्होंने जो कहा है, वाकई स्थिति तो तीनों ही स्थानों पर कांग्रेस के मौजुदा विधायकों की खराब है। परफारर्मेंस सही नहीं है, जनता में नाराज़गी है, लेकिन सवाल यह है कि इन स्थानों पर वह कौन सा मापदण्ड था, जिसके कारण उन्हें टिकट मिला और चिंतामणि का टिकट कट गया, यह सवाल उठाया है चिंतामणि महाराज ने और कांग्रेस से जाते-जाते कांग्रेसी नेताओं के माथे पर चिंता की लकीर खिंच दी है।

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