लुण्ड्रा के सभी जनपद सदस्यों ने शिकायत की फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई, शायद कलेक्टर एवं जिला पंचायत कार्यालय द्वारा शिकायतों को कुड़े में फेंक दिया गया, पुख्ता दस्तावेज के बाद भी डेढ़ साल में कोई कार्यवाही नहीं
अम्बिकापुर/त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था एवं उसके चुने हुए जनप्रतिनिधियों की कितनी सुनवाई होती है और उनके पास कोई शक्ति है भी या नहीं या फिर दिखावे मात्र के सरपंच, जनपद सदस्य एवं जिला पंचायत सदस्य होते हैं, इसकी पुष्टि आपको यदि करनी है तो सरगुजा में ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जायेंगे जहां आदिवासी जनप्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन करते अधिकारी दिख जायेंगे लेकिन मजाल है कि किसी उच्च अधिकारी में इतनी शक्ति हो कि वो इन पर कार्यवाही कर सके। जिस हसदेव को बचाने के लिये लगातार आंदोलन हो रहा है, वहां पर कैसे ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव द्वारा पुरे नियम कायदों की धज्जीयां उड़ाई गई सभी ने देखा है। आदिवासी बाहुल्य जिले में आदिवासी लगातार हल्ला करते रह गये, शिकायत करते रह गये लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। यह कोई पहला मामला नहीं है अधिकतर खनन क्षेत्रों में सरगुजा में यही हुआ है स्थानीय निवासी संघर्ष करते रह जाते हैं और उच्च पदों पर बैठे अधिकारी जनता की सेवा छोड़ खनन कंपनियों की नौकरी बड़ी ईमानदारी के करते हैं।
मैं जिस विषय पर बात कर रहा हूं यह पुरा मामला है लुण्ड्रा जनपद पंचायत का जहां पर प्रभारी सीईओ एस.एन. तिवारी द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार को लेकर 26 दिसम्बर 2022 को जनपद पंचायत लुण्ड्रा के सभी जनपद सदस्यों ने एकजुट हो कलेक्टर सरगुजा को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें विभिन्न आरोप लगाये तथा जांच की मांग की गई। किन्तु डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी न तो जिला पंचायत हरकत में आया और न ही कलेक्टर कार्यालय।
भ्रष्ट प्रभारी जनपद सीईओ लुण्ड्रा एसएन तिवारी ने केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार की कई बंद पड़ी योजना जिसकी राशि उन्हें रायपुर ब्याज समेत भेजना था। उस राशि को स्वयं बिना किसी से कोई अनुमति लिये बगैर खर्च कर दिया। अमूमन किसी भी योजना के लिये अंतिम आदेश कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ से होता है, लेकिन यहां पर न तो प्रभारी जनपद पंचायत सीईओ एसएन तिवारी ने किसी की अनुशंसा अथवा अनुमति लेना उचित समझा। बल्कि जनपद पंचायत के सामान्य सभा तक में प्रस्ताव नहीं रखा। जिससे विवाद बढ़ा। जब जनपद पंचायत के सदस्यों ने सामान्य सभा के कार्यवाही रजिस्टर में हस्ताक्षर करने से मना किया तब यह पुरा मामला सामने आया। इसके बावजुद चाहे हम जितना भी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को मजबुती देने एवं शक्ति देने की बात करें अथवा आदिवासी क्षेत्रों में पेशा कानून की बात करें यहां चलता है तो र्सिफ एसएन तिवारी जैसे भ्रष्टाचारियों का राज, जहां पर शिकायत के बावजुद न तो जिला पंचायत कोई कार्यवाही करने का साहस दिखा पाती है और न ही कलेक्टर कार्यालय। यहां पर दिये जाने वाले शिकायतों को शायद कुड़े ढेर में फेंक दिया जाता है, तभी तो डेढ़ वर्ष में कार्यवाही के नाम पर एक नोटिस तक कलेक्टर कार्यालय अथवा जिला पंचायत से जारी नहीं हुआ।
आप सोचिये की जिले का सबसे बड़ा अधिकारी कौन होता है, कलेक्टर। अब जब उसके ऑफिस में की गई शिकायत के बाद भी कार्यवाही न हो तो लोग कहां जायें। यदि न्यायालय की शरण लें तो ये भ्रष्ट अधिकारी जो लाखों करोड़ों शासन को चपत लगा कर आराम से घुम रहे हैं, इनका तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है, लेकिन जो इनके पिछे पड़ा वो परेशान होकर अंतिम में थक हारकर बैठ जायेगा। अब जब कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की ही सुनवाई कलेक्टर के कार्यालय में न हो तो फिर ऐसे नियम-कानून को बनाने का क्या फायदा? जहां यह बात बड़ा जोर लगाकर बोली जाती है कि आदिवासियों के लिये हम ऐसी व्यवस्था दे रहे हैं, वैसी व्यवस्था दे रहे हैं, त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के जरिये पंचायतों, जनपदों एवं जिला पंचायतों को अधिकार दे रहे हैं। अधिकार न तो पहले था और न ही अब है। पहले कानून नहीं था इसलिये सबकुछ आसानी से हो जाता था और अब नियम कानून होने के बाद भी अधिकार जिनका है उनको नहीं दिया जाता, ऊपरी स्तर पर बैठे अधिकारी अपने अनुसार पुरी व्यवस्था को हांकते हैं।
जनपद के एक प्रभारी सीईओ को इतनी शक्ति अथवा छूट कहें कहां से प्राप्त हो गई कि उसने किसी कार्य के लिये राशि खर्च करने हेतु उच्च अधिकारियों से वित्तीय अनुशंसा अथवा स्वीकृति लिये बगैर बंद पड़ी योजनाओं की बचत राशियों को खर्च कर दे। यदि प्रभारी जनपद सीईओ ने मनमानी कर भी दी तो फिर जिला पंचायत एवं कलेक्टर कार्यालय ने कई शिकायतों के बावजुद भी कोई कार्यवाही क्यों नहीं की। ठीक है सूचना के अधिकार लगाने वाले लोग अथवा आरटीआई एक्टिविस्ट को तो ये सरकारी अधिकारी और कार्यालय वसूली करने वाला मानते हैं, लेकिन जिस जनपद पंचायत के सभी जनपद सदस्यों ने एक स्वर में अपने प्रभारी जनपद सीईओ के भ्रष्टाचार को उजागर किया हो, उन जनपद सदस्यों की क्यों नहीं सुनी गई। क्या कलेक्टर कार्यालय और जिला पंचायत के कार्यालय केवल आवेदन लेकर कुड़े में उसे फेंकने के लिये होते हैं अथवा उनकी कोई जवाबदेही बनती है।