निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को सूल


भारतेन्दु साहित्य कला समिति द्वारा भारतेन्दु जयंती समारोह मनाया गया
लाइब्रेरी व वरिष्ठ साहित्यकारों पर शोध कार्य कराएगी संस्था
अंबिकापुर। साहित्य एवं कला के विकास हेतु समर्पित संस्था भारतेन्दु साहित्य कला समिति, सरगुजा द्वारा भारतेन्दु जयंती के अवसर पर साहित्यिक समारोह का आयोजन स्थानीय भारतेन्दु भवन में किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ. राजकुमार उपाध्याय मणि, विशिष्ट अतिथि नीलाभ शर्मा, नीलिमा मिश्र तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ विचारक बब्बनजी पांडेय ने की। भारतेन्दु हरिशचन्द्र एवं माता सरस्वती के छाया चित्र पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलन के साथ गीता द्विवेदी के सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
मुख्य अतिथि डॉ. राजकुमार उपाध्याय मणि ने भारतेन्दु हरिशचन्द्र के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज इनकी 173वीं जयंती है। भारतेन्दु संधिकाल के महापुरुष कवि थे, जिनके द्वारा लगभग 300 पुस्तकों का लेखन एवं प्रकाशन किया गया। हिंदी खड़ी बोली की स्थापना का महती कार्य उनके द्वारा किया गया। भारतेन्दु ने नाट्य साहित्य का इतिहास लिखा एवं संस्कृत व बंगला के नाटकों का अनुवाद भी किया। इनके कहानी एवं नाटकों में धारदार व्यंग्य देखते ही बनता है। विशिष्ट अतिथि नीलाभ शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि भारतेन्दु का व्यक्तित्व एवं कृतित्व आलोचक रामबिलास शर्मा के शब्दों में अंर्तविरोधों से घिरा हुआ है। भारतेन्दु ने खड़ी बोली में रचना प्रारंभ कर उसे लोक से जोड़ने का कार्य किया तथा स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से जनता में नई चेतना का संचार किया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. सुदामा मिश्र ने कहा भारतेन्दु पांच वर्ष की बाल्यावस्था में दोहा लिखने के लिए अपने पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त कर उसे फलीभूत किया। 15 वर्ष की अवस्था में साहित्य सेवा प्रारंभ कर 17 वर्ष में कवि वचन सुधा पत्रिका निकालना प्रारंभ किया, जिसमें तात्कालीन विद्वतजनों की रचनाएंं छपती थीं। 29 वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। भारतेन्दु साहित्य समिति की अध्यक्षा नीलिमा मिश्र ने भारतेन्दु के व्यक्तित्व और उनके द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा भारतेन्दु ने उर्दू, फारसी, संस्कृतनिष्ट भाषा से पृथक सरल व सहज हिंदी, खड़ी बोली में लेखन प्रारंभ कर उसे जन भाषा बनाया। उन्होंने इस अवसर पर भारतेन्दु भवन में लाइब्रेरी की स्थापना व विशिष्ट साहित्यकारों पर शोध कराने की घोषणा की, जिसका उपस्थितजनों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। वरिष्ठ विचारक सेवानिवृत्त प्राचार्य बब्बनजी पांडेय ने अपने समीक्षात्मक वक्तव्य में कहा कि भारतेन्दु हरिशचन्द्र एक संस्था और शास्त्रज्ञ होने के साथ ही युगपुरुष थे। वे एक श्रेष्ठ नाटककार एवं पत्रकार भी थे। उन्होंने राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाया। वास्तव में भारतेन्दु अत्यंत परंपरागत युग में अत्यंत प्रगतिशील थे। इस अवसर पर समिति के संयोजक द्वितेन्द्र मिश्र द्वारा सभा को संबोधित किया गया। वरिष्ठ कवियित्री एवं प्राचार्य संध्या सिंह द्वारा भारतेन्दु हरिशचंद्र की गद्य रचना लेवी जान लेवी का पाठ किया गया। गीता द्विवेदी ने भारतेन्दु की पद्य रचना का सस्वर पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रकाश कश्यप एवं अर्चना पाठक ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. सुधीर पाठक द्वारा किया गया। इस अवसर पर राजेश कुमार मिश्र, वेद प्रकाश अग्रवाल, शशिकांत दुबे, ब्रह्मशंकर सिंह, कन्हैयालाल गोड़, एमएम मेहता, जेपीश्रीवास्तव, अंजनि सिन्हा, सपन सिन्हा, राजेन्द्र विश्वकर्मा, रामलाल विश्वकर्मा, अजय शुक्ल बाबा, उत्तम कुमार तिवारी, राजेश पांडेय अब्र, राकेश मिश्र, रमेश सिन्हा, उमेश कुमार पांडेय, अखिलेश कुमार दुबे, केके मिश्र, अनिल कुमार सिंह, अशोक सोनकर, डॉ. नीरज वर्मा, आरडी मिश्र, मंजू पाठक, सीमा तिवारी, माधुरी जायसवाल, आशा पांडेय सहित अत्य साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *