23 मार्च-विश्व मौसम दिवस विशेष वायुमंडल में अस्थिरता के कारण आकार लेती है मौसमी घटनाएं प्राकृतिक आपदा के प्रभावों के न्यूनीकरण में मौसम विज्ञान की भूमिका अहम


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एएम भट्ट, मौसम विज्ञानी अंबिकापुर
प्रकृति की विनाशकारी घटनाएं वास्तव में पर्यावरण के नकारात्मक स्वरूप का प्रकटीकरण होता है। मानव के द्वारा बलात दोहन का विषम प्रभाव जलवायु की नियमित स्थायित्व को छिन्न-भिन्न करती है। कोई भी मौसमी घटना वायुमंडल के अस्थिरता के कारण ही आकार लेती है। वायुमंडल का यह असंतुलन वायु के कई परतों में तापांतर उत्पन्न करता है। विपरीत प्रकृति की हवाओं के सम्मिलन से वायुमंडल में उत्पन्न हुई असंतुलन हमें कभी अल्प तो कभी अति वर्षा के रूप में दिखती है। वायु परतों के तापांतर से हवाओं की गतिशीलता में वृद्धि के कारण जब यह चक्रवाती स्वरूप को प्राप्त करता हुआ शक्तिशाली हो जाता है तब बवंडर, झंझावात, तूफान तक की अवस्था में पहुंच कर विनाशकारी हो जाता है। भ्रमिल चक्रवाती हवा की ताकत एक कार को उड़ा सकने तक पहुंच जाती है। विशाल पेड़ों को यह जड़ से उखाड़ सकती है और भवनों को धराशायी कर सकती है। तीव्र ओलावृष्टि की स्थिति देखिए, इसकी चपेट में आने वाला वेजुबान जानवर हो, पक्षी हो या फिर इंसान ही क्यों न हो, इसके प्रकोप से स्वयं को बचा नहीं पाता। जब आसमान काले, कपासी वर्षी मेघों के साथ तांडव करता हुआ बिजली की तरंगें उत्पन्न करने लगता है तब वह कहीं भी, किसी को भी धराशायी कर देता है। अति वर्षा के कारण प्रतिवर्ष नदियों में लोगों के बह जाने के समाचार पढऩे को मिलते हैं। मौसमी विकृति के अन्य उदाहरणों में टोरनेडो, सुनामी से भूकंप तक सभी अपनी विनाशक कहानी लिख कर ही शांत होते हैं। पिछले दिनों तुर्की की भूकंपीय विनाशलीला में 50 हजार से अधिक मौतों के ताजा उदाहरण सामने है।
भूकंप जैसी आपदा के पूर्वानुमान में आधुनिक विज्ञान मुकम्मल तौर पर सक्षम नहीं
भूकंप जैसी आपदा के पूर्वानुमान में आधुनिक विज्ञान अभी तक मुकम्मल तौर पर सक्षम नहीं हो पाया है, परंतु अन्य मौसमी घटनाओं के पूर्वानुमान में काफी हद तक सक्षम है। वर्तमान में मौसम विभाग प्राकृतिक घटनाओं के प्रभावी होने की जानकारी पर्याप्त समयावधि पूर्व देने में सक्षम है। फिर भी प्राकृतिक आपदाओं के न्यूनीकरण में एक सम्यक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए निगरानी व प्रबंधन के जनशक्ति का प्रशिक्षण आवश्यक है। भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है, इस कारण से यहां प्राकृतिक आपदाओं के अधिक रहने की संभावना रहती है। देखें तो जब उत्तर भारत भीषण शीतलहर की मार झेल रहा होता है तब दक्षिण भारत में बंगाल की खाड़ी से कोई चक्रवाती तूफान प्रभावी हो कर तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, ओडि़सा आदि समुद्र तटीय क्षेत्रों को अवसाद में धकेल रहा होता है। एक ही समय में कहीं बाढ़, भूस्खलन की सूचना मिलती है तो कहीं ऊष्ण लू के थपेड़ों से देश जल रहा होता है।
देश में मौसम वेधशालाओं के एक बड़ा नेटवर्क
आपदा प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत मौसम विभाग की चेतावनी प्रणाली नियमित निगरानी करती है और अपने बुलेटिन जारी करती है। आज देश में मौसम वेधशालाओं के एक बड़ा नेटवर्क है, जिसमें सतही वेधशालाओं के साथ लगभग सभी जिलों में स्वचालित मौसम वेधशाला है। आज मौसम विभाग के पास अत्याधुनिक मौसम निगरानी राडार, रेडियो और उपग्रह तकनीक उपलब्ध है। इन सभी प्रणालियों द्वारा प्राप्त मौसमी आंकड़ो के विश्लेषण पर जो भविष्य की संभाव्यता बनती है उसे नियमित रूप से जनहित में जारी किया जाता है। मौसमी भविष्यवाणियों के प्रति जागरूक जनमानस को इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ भी पहुंच रहा है, फिर भी जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय विकृतियों के कारण भविष्य के जलवायु में उत्पन्न होने वाली विकृति का जो अनुमान है उसके लिए एक जन जागरण की आवश्यकता दिखती है।

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