तेजी से विकसित होती गुटखा संस्कृति, दुष्परिणाम की चेतावनी बेअसर


घरेलू कचरा प्रबंधन मुकम्मल होने की वजह से सड़कों के किनारे, चौराहों और नालियों की सडांध से बहुत हद तक मुक्ति मिली है। अब सड़कों के किनारे दुर्गंध फैलाते कचरों के कंटेनर प्राय: नहीं दिखते। निश्चित ही स्वच्छता की जागरूकता जागी है। परंतु प्रचलन में जिंदा पाउच संस्कृति का क्या किया जाए? सुबह की साफ सुथरी सड़कें शाम होते-होते पाउच के उड़ते रैपरों से बेरंग मिलती है। सड़कों पर बिखरे इन रैपरों में पाएंगे कि अधिकांश गुटखा, पान मसालों के ही रैपर होते हैं। पहले उपभोक्ता जब एक पाउच का सेवन करता था तब एक ही रैपर सड़क पर गिरता था। परंतु जब से पान मसाला और उसके तंबाकू की पैकिंग अलग-अलग की जाने लगी तब से एक बार के गुटखा सेवन की क्रिया में दो रैपर सड़क पर आ गिरते हैं। कुछ वर्षों पूर्व की गुटखा संस्कृति पर भी नजर डालें तो हम पाते थे कि इसके उपभोक्ता कम थे। किशोर वय और बच्चे बड़ी हिम्मत करके किसी ठेले पर खड़े हो पाते थे, या यह कह लें कि गुटखा की पैठ नादान वय में नहीं थी, वह सिर्फ युवाओं की महानतम संस्कृति में सुमार थी। आज उन लोगों यह ऊंची पसंद के भेद को भेदती हुई हर आम और खास के जेबों में स्थान पा चुकी है। विद्यालय जाते बच्चों के स्कूल बैग से, अध्यापक के पैंट की जेबों तक, सफेदपोश नायकों के कुर्ते की पॉकेट से चिकित्सकों की जेबों तक, खास कर चारपहिया के डेस्क बोर्ड और आम के कंधों पर लटकती गमछे के किसी कोर की गांठ तक, गुटखा अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। हद तो तब और भी हो जाती है, जब गुटखा मुक्ति पर प्रवचन चल रहा हो, उस कार्यक्रम का प्रायोजक कोई गुटखा कंपनी ही हो। और तो और सदी के बड़े-बड़े नायक भी जब लुभावने तरीकों से गुटखा की पैरवी करें तो आम जनता तो उसे अमृत ही समझेगी। लिहाजा रैपरों की संख्या उधर दोगुनी हुई और उपभोक्ता चार गुना, तो सड़क पर रैपरों की संख्या पहले की तुलना में आठ गुना तो होगी ही। कभी जब तेज हवा चल जाए तब इन रैपरों की उड़ान देखिए। कभी ये आपके ड्राइंग रूम, कभी बेड रुम तो कभी घर की छतों तक जा पहुंचते हैं और अपने ऊपर छपे कैंसर की तस्वीर के साथ मुस्कुराते हुए हमें ताकते मिलते हैं।
गुटखा, तंबाकू के नकारात्मक पहलू
अधिकतर यही कहा जाता है कि तंबाकू कैंसर का कारक होता है। पर वास्तव में तंबाकू शरीर के प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों पर बलात कब्जा करके आंतरिक ऊर्जा का क्षय करता है। यह तय मात्रा से अधिक होने पर मस्तिष्क की क्रियाविधि को पंगु कर देता है। आप की स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है। आपकी याददाश्त क्षीण हो जाती है। कुछ देर पहले सुनी हुई बातें विस्मृत हो जाती हैं। इसकी अधिक मात्रा शरीर के सामान्य क्रिया को शिथिल कर के मानसिक आक्रामकता को बढ़ाते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर उच्च होने लगता है। कुल मिला कर यह शारीरिक ग्राह्य क्षमता से अधिक होने पर धीमा जहर का काम करता है। कैंसर तो इसका अंतिम लक्ष्य होता है। अब तो ये शोध का विषय है कि इन वस्तुओं पर छपी तस्वीरों व लिखी चेतावनी से कितने उपभोक्ता इनसे विमुख हुए? कोई रिपार्ट हो, कोई शोध परिणाम आया हो तो जनहित में उजागर किए जाने की गुजारिश है। फिलहाल तो सड़कों पर बेपरवाह उड़ते गुटखे के रैपरों की संख्या देख कर इन तस्वीरों का परिणाम सिफर ही प्रतीत होता है।

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