तू मुझे आशीष दे मां मैं तेरा वंदन करूं, प्राण देकर रक्त से मैं मस्तक तेरा चंदन करूं वसंत पंचमी व मां सरस्वती के प्रकटोत्सव पर विद्या मंदिर में हुई काव्यगोष्ठी


अंबिकापुर। वसंत पंचमी के मौके पर पर समाज सेविका वंदना दत्ता के संयोजन में प्रतापपुर रोड स्थित विद्या मंदिर में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवियित्री मीना वर्मा और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मीना वर्मा व वंदना दत्ता ने महाकवि निराला द्वारा विरचित मां सरस्वती के सुप्रसिद्ध वंदना गीत-वर दे वीणा वादिनी वर दे की सस्वर प्रस्तुति से की। कवयित्री पूर्णिमा पटेल ने अपने मधुरिम स्वर में स्वरचित गीत-नित नयन जल से पखारूं पांव तेरे शारदे, हाथ मेरे सर पे रख दे, कर दया मां शारदे सुनाकर वातावरण को भक्तिभाव से सराबोर कर दिया। शब्दकार माधुरी जायसवाल ने मां शारदा के विषय में कहा- शब्द-शब्द में बसनेवाली झोली भर देती मां। प्रकाश पुंज दिखाकर, जीवन जगमग कर देती मां। कवयित्री राजलक्ष्मी पांडेय ने भी मां भारती के प्रति अपनी सहज कृतज्ञता ज्ञापित की। अनिता मंदिलवार ने मां वीणापाणि से छंदों का ज्ञान देने की प्रार्थना कुछ ऐसे की-मुझे ज्ञान दो शिल्प का, छंद का मां, सवैया लिखूं जो मिले भावधारा। नगमा निगार व मलिका-ए-तरन्नुम पूनम दुबे ने मां हंसवाहिनी से श्रेष्ठ काव्य सृजन का वरदान देने का आग्रह किया। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला की जयंती वसंत पंचमी के दिन ही मनाने की परंपरा है। वरिष्ठ गीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने महाप्राण निरालाजी को मां वीणापाणि का सबसे प्यारा पुत्र बताते हुए उनके स्वभाव का सटीक चित्रण किया-वीणापाणि के नयनों का सबसे प्यारा तारा था, कभी-कभी हिम सा शीतल और कभी अंगारा था। आंधी के संग दौडऩेवाला तूफानों का पाला था। तन चंदन-जैसा था उसका, मन तो एक शिवाला था। कवयित्री गीता दुबे ने शानदार वासंती रचना की प्रस्तुति दी-वासंती का सार प्रेम है, जीवन का आधार प्रेम है। प्यार का मौसम है वसंत। प्यार नहीं तो है रिश्तों का अंत। कवि प्रकाश कश्यप ने वसंत के मौसम में अचानक आई अपने गांव और बचपन की यादों को कुछ ऐसे प्रस्तुत किया-आ गया हूं शहर छोड़ प्यारा-सा घर। कट रही है यहां कैद में अब उमर। वसंत पंचमी के दिन गणतंत्र दिवस होना कवियों के लिए सोने में सुहागा-जैसा रहा। गोष्ठी में देशभक्तिपूर्ण रचनाओं का जो दौर शुरू हुआ, वह महफिल उठते तक बदस्तूर जारी रहा। फिल्म एक्टर, डॉयरेक्टर व कवि आनंद सिंह यादव ने भारतीय गणतंत्र को देश के लाखों वीरों की शहादत से प्राप्त आजादी का सुफल बताया। कवि अजय श्रीवास्तव ने अपने दिल का दर्द कविता में उड़ेला-अब कहीं सौहाद्र्र की बातें भी होती नहीं, अब तिरंगे के लिए कोई क़सम खाता नहीं। मातृभूमि की वंदना पूर्णिमा पटेल ने अपने काव्य में जहां बखूबी की। शायर-ए-शहर यादव विकास ने भारत की ख्याति पूरे विश्व में व्याप्त होने की बात कही-हम नहीं तो जहां नहीं होता, हमारा नाम कहां नहीं होता? वहां नहीं है प्यार की खुशबू जहां पर हिन्दुस्तान नहीं होता। कवयित्री आशा पांडेय ने अपने दोहों में देश का जयघोष करते हुए वीर सैनिकों के अप्रतिम शौर्य व पराक्रम का जीवंत चित्रण किया। गीतकार राजेन्द्र राज ने ऐसी सरगुजिहा कविता पढ़ दी कि श्रोता अपनी हंसी पर काबू न पा सके-तुमन तिरंगा झिन खावा, खाय-खाय के तुमन झिन मोटावा। गीतकार संतोष सरल ने अपनी कालजयी उत्कृष्ट गीत रचना से काव्यगोष्ठी को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं-तू मुझे आशीष दे मां, मैं तेरा वंदन करूं, प्राण देकर रक्त से मैं, मस्तक तेरा चंदन करूं। जाने-माने दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहों में देश की विविधता में एकता की बात करते हुए गणतंत्र दिवस को सार्थक बनाने का आव्हान किया। अंत में डॉ.योगेन्द्र सिंह गहरवार की प्रेरणादायी, मार्मिक व विचारोत्तेजक कविता से काव्यगोष्ठी का यादगार समापन हुआ-दीन-हीन अति निर्बल से जब भी कोई छल होगा, सत्य, अहिंसा का ही केवल उसके पास तब बल होगा। जब उसकी भयकंपित बोली सत्याग्रह बन जाएगी, तब-तब हमको गांधी बाबा याद तुम्हारी आएगी। गोष्ठी में अभिनव चतुर्वेदी और ममता चैहान ने भी अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन संतोष सरल और आभार प्रदर्शन वंदना दत्ता ने किया। इस असवर पर डॉ.अपेक्षा सिंह, लीला यादव, तनुश्री मिश्रा, अनिमा मजुमदार, नेहा वर्मा, साधना कश्यप, जयंती सहित अन्य काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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