छत्तीसगढ़ के वन भूमि में आवर्ती चराई इकाई का निर्माण, कोर्ट ने दिया राज्य व केंद्र को नोटिस कहा-ट्री एंड वाइल्ड लाइफ कैन नॉट कम टू कोर्ट, किसी को तो आना पड़ेगा


अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा वन भूमि पर बनाए गए आवर्ती चराई इकाई के निर्माण के मामले में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की युगल पीठ ने राज्य शासन और केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा अगर ये निर्माण कानून के विरुद्ध किए गए हैं तो उसे हटाना पड़ेगा। बहस के दौरान कोर्ट ने कहा ट्री एंड वाइल्ड लाइफ कैन नॉट कम टू कोर्ट, किसी को तो आना पड़ेगा। मामले में अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ता अंबिकापुर के अधिवक्ता डीके सोनी तथा रायपुर के संदीप तिवारी ने जनहित याचिका लगाकर न्यायालय के संज्ञान में लाया था कि वन भूमि को बिना डायवर्ट किए 1307 स्थानों में 25-25 एकड़ तक की वन भूमि में आवर्ती चराई इकाइयां बनाई गई हंै। यह कार्य वन संरक्षण अधिनियम 1980 और वन अधिनियम 1927 व अन्य संबंधित अधिनियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। याचिका में बताया गया कि इन आवर्ती चराई इकाइयों में गैर वानिकी कार्य किए जा रहे हैं। मल्टी एक्टिविटी सेंटर के नाम से पक्के निर्माण कराए गए हैं। इन इकाइयों में मछली पालन, मुर्गी पालन, बटेर पालन, बत्तख पालन, सुअर पालन, ट्री गार्ड निर्माण, लघु वनोपज संग्रह, मसाला निर्माण, तिखुर उत्पादन, गो पालन, मशरूम उत्पादन, फूल झाड़ू निर्माण, दोना पत्तल निर्माण, सिलाई कार्य, चारागाह जैसे कार्य किए जा रहे हैं। यहां गोबर का वर्मी कंपोस्ट और सुपर कंपोस्ट बनाकर विक्रय भी किया जा रहा है।
गौरतलब है कि वन भूमि को डायवर्ट करने के पूर्व केंद्र शासन की अनुमति अनिवार्य है, जिसे नहीं लिया गया था और वन भूमि को बिना डाइवर्ट किए निर्माण कार्य करवा दिए गए।

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