क्या सिंहदेव के बिना 2023 में सरकार बना पायेगी कांग्रेस?

2023 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को वापसी करनी है। वापसी कैसे होगी, इसे लेकर अभी कोई वास्तविक रणनीति नहीं दिखती। वर्तमान स्थिति यह बताती है कि कांग्रेस की वापसी संभव है, क्योंकि वर्तमान में भाजपा उन्हें चुनौती देती हुई नहीं दिख रही है। किंतु कांग्रेस के इस संभव जीत में एक असंभव सुई भी है, जो टी एस सिंह देव पर जाकर टिक जाती है। चुनाव के दौरान उनका रुख ही यह तय करेगा कि कांग्रेस जीतेगी या हारेगी। कांग्रेस की जीत इसी बात पर टिकी हुई है कि सिंहदेव कांग्रेस के साथ रहें और चुनाव में कांग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार करें। यदि सिंहदेव बैठ जाते हैं अथवा चुनाव नहीं लड़ते या किसी दूसरी पार्टी का रुख कर लेते हैं तो कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ में दुबारा सरकार बनाना बेहद कठिन होगा। बघेल मानें या ना मानें, राहुल-प्रियंका मानें या न मानें यदि टी एस सिंह देव चुनाव के दौरान कोई भी उठापटक करते हैं तो दुबारा सरकार बनाना कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल होगा, क्योंकि सरगुजा संभाग की 14 सीटें सहित बस्तर की सीट और कुछ रायगढ़ की सीट कम से कम 20 सीट, अधिकतम 25 से 30 सीट पर सिंहदेव का प्रभाव है, जहां सरगुजा संभाग के बाहर यदि अपने प्रभाव वाले सीटों पर 10 से 5 हजार वोट भी सिंहदेव के इशारे पर प्रभावित हुई तो कई सीटें कांग्रेस के हाथ से निकल जायेगी। क्यों कि छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान किसी विशेष लहर को यदि छोड़ दें तो यहां पर कई सीटों पर जीत का अंतर 1 से 5 हजार के अंदर का रहता है। ज्यादा नहीं यदि 10 सीटें भी प्रभावित हुई पूरे छत्तीसगढ़ में तो सरकार बदल जायेगी। ऐसी स्थिति में 2023 का यह पूरा चुनाव 2018 के बाद एक बार फिर से सिंहदेव की रणनीति, उठापटक एवं निर्णय पर केंद्रित रहेगा।
जी हां! ये वहीं टी एस सिंह देव हैं, जिन्होंने 2018 के चुनाव में तन, मन, धन लगाकर पार्टी को जीताया। ऐसा घोषणापत्र बनाया जो कांग्रेस के अंदाजे से भी अधिक सीट लेकर आई। बताया जाता है तब टी एस सिंह देव एवं भूपेश बघेल के बीच ढ़ाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का समझौता राहुल गांधी के समक्ष हुआ था। यह समझौता कैसे हुआ, इसका कोई प्रमाण नहीं है, जैसा कि राजनीति में होता है मौसम देख कर वायदे किये जाते हैं और समझौते होते हैं, जो समय के साथ-साथ बदल भी जाते हैं। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव के साथ भी पार्टी ने वहीं किया, उनसे किया वायदा तोड़ दिया। लेकिन फिर भी सिंहदेव को अभी भी भरोसा है कि वे चुनाव के अंतिम समय तक मुख्यमंत्री बन ही जायेंगे। सिंहदेव के दिलों दिमाग पर मुख्यमंत्री बनने का यह कीड़ा ऐसे बैठ गया कि धीरे-धीरे वे लोगों से ही दूर होते चले गए। इसके कई कारण थे, उन्हें यह अंदाजा था कि ढाई साल बाद पार्टी आलाकमान उन्हें छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनायेगा, किन्तु ऐसा हुआ नहीं।
जबकि टी एस सिंहदेव के मुख्यमंत्री का प्रतिद्वंद्वी होने के कारण मुख्यमंत्री बघेल ने सरगुजा की लगातार उपेक्षा की, सिंहदेव को यह हमेशा लगता रहा कि जो नहीं हो पा रहा है, सीएम बनते ही मैं सरगुजा संभाग की जनता की अपेक्षा को पूरा करूंगा। किन्तु जब वे 4 साल बाद भी सीएम नहीं बन पाये तो कहीं न कहीं लोगों से नज़रें चुराना बोलिये या बचने की कोशिश करने लगे। जिसका खामियाजा यह हुआ कि सिंहदेव की आमजनों से दूरी लगातार बढ़ती चली गई। अपनी ही सरकार में उनकी इतनी उपेक्षा हुई कि छोटे-छोटे काम नहीं होने लगे, चेहरे देख कर प्रशासनिक अधिकारियों ने काम करना शुरू कर दिया। सिंहदेव एक साफ छवि के नेता माने जाते हैं, वे अपनी बात भी स्पष्टता के साथ रखते हैं। ऐसे में कहीं न कहीं उन्हें इस बात का मलाल है कि 2018 के चुनाव में घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने लोगों के बीच जो वायदा किया, वह पूरा नहीं हो सका है, खासकर सरगुजा संभाग और सरगुजा, बलरामपुर, सूरजपुर के लोगों को उनसे जो अपेक्षा थी, वह पूरी नहीं हुई, कई सड़कें, कई बड़े पुल-पुलिया, कई बांध, कई बुनियादी आवश्यकता जिसके लिए उन्होंने वायदा किया था। कांग्रेस को बहुमत दीजिये सरकार में आने दीजिये, सबकी समस्या हल होगी। अपने उस वायदे पर वे खरे नहीं उतरे, जिससे अब लोगों से बचते भी हैं कि आखिरकार उन्हें क्या जवाब देंगे। क्योंकि स्वयं सिंहदेव विपक्ष के दौरान आमजनों से कहते हुए मिल जाते थे, अभी तो विपक्ष में हैं हमारी सुनवाई कम है और जब सरकार आई तो जो सुनवाई विपक्ष में हो जाया करती थी, उससे भी बुरी स्थिति सिंहदेव एवं उनके समर्थकों की है। ऐसे में यह तय है कि सिंहदेव कोई फैसला तो जरूर लेंगे, लेकिन वह क्या होगा अभी स्पष्ट नहीं है। सरगुजा में सड़कों की स्थिति का बुरा हाल है, स्वयं सिंहदेव जिस अम्बिकापुर सीट से विधायक हैं उसके नगर निगम अम्बिकापुर में वे पिछले 4 साल में कुछ खास नहीं कर पाये, जनता सवाल करती है दो कार्यकाल विपक्ष एवं एक कार्यकाल सरकार में रहे, शहर के लिए क्या किया? फिलहाल सिंहदेव के पास इसका कोई जवाब नहीं है। सिंहदेव के नज़दीकी लोगों का कहना है सिंहदेव चुनाव नहीं लड़ेंगे, यदि सिंहदेव चुनाव नहीं लड़े फिर क्या होगा? सत्ता के मद में मदमस्त अविभाजित सरगुजा के विधायकों एवं मंत्रियों को लगता है वे सिंहदेव के बिना भी जीत कर आ जायेंगे, लेकिन उनकी वास्तविकता क्या है वे विधायक स्वयं जानते हैं?
ऐसे में सरगुजा संभाग की राजनीति 2023 के चुनाव में एक नया अध्याय लिखने को बेताब है, लेकिन यह नया अध्याय क्या होगा, यह अभी भी भविष्य के गर्त में है। 2023 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी का चाभी भूपेश बघेल नहीं बल्कि सिंहदेव के जेब में है, वह कब और कैसे, किसके लिए जीत का ताला खोलेंगे यह चुनाव के कुछ समय पहले ही स्पष्ट हो पायेगा। हालांकि भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों ही खुश हैं कि सिंहदेव ने यदि कांग्रेस छोड़ा तो वे उनका दामन थामेंगे। फिलहाल सिंहदेव अपने नये-नये बयानों के जरिये न सिर्फ क्षेत्र की जनता का नब्ज़ टटोल रहे हैं, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं एवं पार्टी के बीच अपनी स्थिति का आंकलन भी कर रहे हैं। सिंहदेव एक अनुभवी नेता हैं और यूँ ही कुछ नहीं बोलते। खैर फैसला जो भी हो वह तो अंतिम समय में ही होगा। सिंहदेव की वर्तमान स्थिति पर मुझे कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं…..

ना पूछो कि मेरी मंजिल कहाँ है,
अभी तो सफर का इरादा किया है,
ना हारूंगा हौसला उम्र भर,
ये मैंने किसी से नहीं खुद से वादा किया है।

-अंचल कुमार ओझा

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *