अंडा दो अभियान…आंगनबाड़ी व स्कूलों में प्रोटीनयुक्त आहार देना बंद की सरकार, बच्चों की थाली से गायब अंडा को लेकर विभिन्न संगठन एकजुट होकर उठा रहे आवाज

अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ सरकार का आईसीडीएस व मध्यान्ह भोजन योजनाओं में अंडा देने की नीति पर कोई विचार नहीं होने पर माह भर पूर्व से बनाई जा रही कार्ययोजना के तहत छत्तीसगढ़ किसान मजदूर संगठन, रोजी-रोटी अधिकार अभियान व भोजन का अधिकार अभियान के पदाधिकारियों व चिकित्सकों ने सरगुजा प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा कर अपनी बातों को साझा किया। इसके पहले रविवार को बच्चों और महिलाओं के साथ लगभग दो सौ लोगों ने प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव से मुलाकात की। सोमवार को काफी संख्या में लोग कलेक्टोरेट पहुंचे और अंडा दो अभियान को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम सरगुजा कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। इस अभियान में सरगुजा जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ उड़ीसा, बिहार, मुंबई के कार्यकर्ताओं और छात्रों ने भी हिस्सा लिया।
अभियान के समर्थन में आगे आई डॉ.वसुंधरा के अलावा संगवारी संस्था के डॉ.चैतन्य मलिक, भोजन का अधिकार अभियान की नताशा टी, विपुल, राजशेखर सहित अन्य राज्यों से आए कार्यकर्ताओं ने कहा सर्वेक्षण टीम जब सरगुजा जिले के विभिन्न विकासखंडों के ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी और स्कूलों तक पहुंचकर मध्यान्ह भोजन में दिए जाने वाले आहार का जायजा ली तो पाया बच्चों के आहार से अंडा गायब है। इधर छत्तीसगढ़ सरकार का आईसीडीएस व मध्यान्ह भोजन योजनाओं में अंडे देने की नीति पर कोई विचार नहीं है। संगठन के पदाधिकारियों ने छोटे-छोटे बच्चों के साथ महिला एवं बाल विकास विभाग जाकर अपनी मांगों को रखा और ‘अंडा दो अभियान के परिप्रेक्ष्य में अपनी बातों को साझा किया। इस अभियान का समर्थन ओडिशा एवं बिहार के कार्यकर्ताओं के साथ चिकित्सकों ने करते हुए कहा सरगुजा सहित प्रदेश में कुपोषण की बढ़ती दर को नियंत्रित करने में अंडा सहायक होगा। इसका विकल्प दूध, सोयाबड़ी है लेकिन एक अंडे से प्रोटीन की जितनी मात्रा बच्चों को मिल सकती है, उसकी पूर्ति दूध व बड़ी को सीमित मात्रा में देकर नहीं किया जा सकता है। पोषण एक अधिकार है, इसे बजट का कृत्रिम अभाव बताकर बंद नहीं किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ किसान मजदूर संगठन के संयोजक गंगाराम पैकरा ने कहा, बच्चों और माता-पिता को यह चुनने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए कि वे अंडे का सेवन करना चाहते हैं या नहीं। संगठन की मांग है कि आंगनबाड़ी में 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को सप्ताह में कम से कम 5 दिन अंडे देना चाहिए। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और 6 महीने से 3 साल की उम्र के बच्चों को सप्ताह में 3 दिनों के लिए टेक होम राशन के रूप में अंडे दिए जाने चाहिए। मध्यान्ह भोजन में हर सप्ताह कम से कम दो दिन अंडा देने की मांग की गई।

सर्वेक्षण के बाद अभियान की शुरूआत
गंगाराम पैकरा ने बताया कि अंडा दो अभियान की शुरुआत 170 आंगनबाड़ी केंद्रों और 414 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के सर्वेक्षण के बाद की गई है। आंगनबाड़ी व मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन का सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण आंगनबाडिय़ों और स्कूलों में भोजन के पोषण मूल्य की जानकारी इक_ा करने के उद्देश्य से किया गया, साथ ही भोजन की विविधता और टेक होम राशन की नियमितता का अध्ययन किया गया। निष्कर्ष यह निकला कि आंगनबाड़ी केंद्रों, प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूलों में दिए जाने वाले भोजन में अंडे को नियोजित तरीके से देने और इसका खर्च राजकीय बजट में शामिल करने की जरूरत है।

प्रोटीन का बेहतर विकल्प अंडा
संगवारी संस्था के डॉ.चैतन्य मलिक ने बताया कि बच्चों के बौद्धिक व शारीरिक विकास के लिए प्रोटीन जरूरी है, ऐसे में अंडा प्रोटीन का बेहतर विकल्प है। इससे बच्चों की मांसपेशियां, हड्डी मजबूत होगी और दिमाग परिपक्व होगा। अगर बच्चों व गर्भवती, शिशुवती को शुरू से ही अंडा स्कूल व आंगनबाडिय़ों में आहार के रूप में मिले तो कुपोषण की समस्या काफी हद तक दूर होगी। कुपोषण किसी एक प्रदेश की नहीं पूरे देश की समस्या है। बच्चों की इम्यूनिटी के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
सर्वेक्षण में यह आया सामने
सरगुजा के उदयपुर, लखनपुर, बतौली व लुंड्रा ब्लॉक के 173 आंगनबाडिय़ों और 400 स्कूलों का सर्वेक्षण छत्तीसगढ़ किसान-मजदूर संगठन, रोजी-रोटी अधिकार अभियान, भोजन का अधिकार अभियान संगठन के कार्यकर्ताओं को 13 प्रतिशत आंगनबाड़ी सर्वेक्षण के बीच सभी दिन बंद मिले। सर्वे के दौरान एक भी आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को अंडा नहीं मिला। 24 प्रतिशत आंगनबाड़ी में आलू-सोयाबीन बड़ी के अलावा दूसरी सब्जियां देना पाया गया। 22 प्रतिशत स्कूलों में एक माह से ऊपर हो गए अंडा बच्चों की थाली में नहीं परोसा गया है। 67 प्रतिशत स्कूलों के शिक्षकों ने कहा मध्यान्ह भोजन में अंडा देने से बच्चों की उपस्थिति बढ़ी।

चावल, रसोई गैस तक की आपूर्ति अपर्याप्त
सर्वे टीम ने पत्रकारों को बताया कि कई आंगनबाड़ी केंद्रों में जाने पर कार्यकर्ताओं ने चावल की आपूर्ति अपर्याप्त होने की जानकारी दी। एक-दो आंगनबाड़ी में कार्यकर्ता अपने घर से बच्चों के लिए चावल लेकर आते नजर आईं। ऐसे भी आंगनबाड़ी केंद्र मिले, जहां रसोई गैस की किल्लत थी। कार्यकर्ताओं के बैठक में या अवकाश में रहने की स्थिति में संगठन की ओर से प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में दो लोगों कार्यकर्ता और सहायिकाओं की नियुक्ति की जरूरत महसूस की गई, ताकि आंगनबाड़ी के संचालन में व्यवधान की स्थिति न बने।

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