स्कूल की लाइब्रेरी में संदर्भ पुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित करें, कलेक्टर के निर्देश पर निजी स्कूल के संचालकों को डीईओ ने जारी किया आदेश

अंबिकापुर। नए शिक्षा सत्र की शुरूआत के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी शुरू हो जाती है। अभिभावकों पर फीस के साथ ही बच्चों की किताबों को लेकर अत्यधिक भार डाल दिया जाता है। आरटीई के तहत बच्चों को प्रवेश दिलाए अभिभावक भी महंगी किताबों को खरीदने बाध्य होते हैं। हर वर्ष यह परिपाटी चली आ रही है। इस संबंध में तमाम शिकायती स्वर अभिभावक संघ की ओर से बीते वर्ष भी उठाए गए थे। इस बार भी हालात ऐसे ही बनने हैं। कोरोना की दस्तक के साथ केंद्र सरकार की ओर से जारी किए जा रहे गाइडलाइन इसका संकेत दे रहे हैं। इधर निजी स्कूलों और स्कूलों के द्वारा चिन्हांकित की गई किताब की दुकानों में अभिभावकों की भीड़ अभी से लगने लगी है। किताब दुकानों में विभिन्न निजी स्कूलों के कॉपी और किताब का बंडल बंध चुका है। छोटे बच्चों की किताबों का भाव आसमान छू रहा है। इधर जिला प्रशासन के निर्देश पर जिला शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि पालकों को संदर्भ पुस्तक लेने की बाध्यता नहीं है।
कलेक्टर के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी सरगुजा द्वारा जिले के सभी निजी स्कूल संचालक, प्राचार्य व स्कूल प्रबंधन को पत्र जारी कर कहा गया है कि एनसीईआरटी व एससीईआरटी के अलावा अन्य पुस्तकें पालक अपने बच्चों के लिए स्वेच्छा से खरीद सकते हैं, इसके लिए निजी स्कूल प्रबंधन की बाध्यता नहीं होगी। इसका अनुपालन सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए गए हैं। इस संबंध में जारी किए गए पत्र में कहा गया है कि निजी विद्यालय एनसीईआरटी व एससीईआरटी के अलावा अन्य पुस्तक को संदर्भ पुस्तक के रूप में उपयोग करना चाहते हैं, तो उक्त पुस्तक की उपलब्धता स्कूल की लाइब्रेरी में सुनिश्चित की जाए। पालक स्वेच्छा से पुस्तक ले सकते हैं, इसके लिए विद्यालय प्रबंधन के द्वारा बाध्य न किया जाए। अब देखना यह है प्रशासन व शिक्षा विभाग के आदेश को लेकर स्कूल प्रबंधन कितना गंभीर होता है।
बिना फीस अदायगी के अंकसूची तक दिखाने में करते हैं आनाकानी
पूर्ववर्ती दो वर्षों में कोरोनाकाल के बीच भले ही बच्चे घर से ऑनलाइन कक्षा में उपस्थिति दर्ज कराते परीक्षा दिए, लेकिन कोरोना के सामान्य होने के बाद कमजोर हुए मध्यम, सामान्य परिवार के हालातों की परवाह न करते हुए कई निजी स्कूलों के प्रबंधन ने उनकी कमर तोडऩे का काम किया। फीस की अदायगी जैसे-तैसे बच्चों के अभिभावकों ने अंकसूची प्राप्त करने के लिए की, इसके बाद स्थानांतरण प्रमाणपत्र देने के नाम पर मनमाना रकम वसूला गया। इन हालातों से जूझ रहे कई अभिभावक, सरगुजा कलेक्टर तक पहुंचे और बच्चों की टीसी दिलवाने व फीस माफ की गुहार लगाए। कई बच्चों के अभिभावक मन मसोस कर निजी स्कूलों के संचालकों की तिजोरी भरते रहे।

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