जानिए 15 जनवरी को क्यों मनाया जाता है सेना दिवस (Army Day) ?

आज ही के दिन यानि 15 जनवरी को हर साल मनाया जाता है आर्मी डे . दिल्ली कैंटोनमेंट के परेड ग्राउंड में आर्मी की परेड होती है. इस दिन आर्मी चीफ परेड की सलामी लेते हैं. ये गणतंत्र दिवस की परेड की तरह होता है. इस दौरान तीनों सेनाओं के प्रमुख मौजूद होते हैं. इस बार 15 जनवरी को देश 73वां सेना दिवस मना जा रहा है..

जैसा की हम अक्सर कहते आए हैं कि हर तारीख हर नंबर खास होता है…किसी खास दिन के लिए एक तारीख को मकर्र करने के पीछे एक वजह होती है…आर्मी डे (सेना दिवस) 15 जनवरी को ही मनाने के पीछे भी एक ठोस कारण है और वो है…

15 जनवरी को देश का पहला भारतीय आर्मी जनरल मिला था. 15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने थलसेना प्रमुख का पदभार ग्रहण किया था. इसके पहले इस पद पर बिट्रिश सेना के अधिकारी तैनात थे. जनरल केएम करियप्पा ब्रिटिश कमांडर जनरल सर फ्रांसिस रॉबर्ट रॉय बुचर से थलसेना का प्रभार लिया था.

बुचर अंतिम कमांडर इन चीफ थे. वो 1 जनवरी 1948 से 15 जनवरी 1949 तक देश के कमांडर इन चीफ रहे थे. आजादी के बाद भी ब्रिटिश सेना के अधिकारी ही थल सेना के प्रमुख के पद पर थे. जनरल केएम करियप्पा के आर्मी चीफ बनने से पहले इस पद पर दो ब्रिटिश अधिकारी रह चुके थे. बुचर से पहले इस पद पर सर रॉबर्ट मैकग्रेगर मैकडोनाल्ड लॉकहार्ट इस पद पर रह चुके थे.15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने कमांडर इन चीफ का पद संभाला. तब से हर साल 15 जनवरी को आर्मी डे के तौर पर मनाया जाता है.

पूरे देश के लिए ये गर्व का मौका था, जब किसी पहले भारतीय ने थलसेना की कमान अपने हाथ में ली थी. जनरल केएम करियप्पा को लोग प्यार से किपर कहा करते थे. जब वो भारत के पहले कमांडर इन चीफ बने, उनकी उम्र महज 49 साल की थी. वो पूरे चार साल तक आर्मी चीफ रहे. 16 जनवरी 1953 को वो रिटायर हुए.

जनरल केएम करियप्पा ने भारत-पाकिस्तान बंटवारे में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. दोनों देशों के बीच के सेटलमेंट में उनका अहम रोल था. जनरल केएम करियप्पा उस आर्मी सब कमिटी के भी हिस्सा थे, जिसने दोनों देशों के बीच सेना के बंटवारे का काम किया था. आधिकारिक तौर पर 1 अप्रैल 1895 को भारतीय थलसेना का गठन हुआ था. ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को भारतीय थलसेना में शामिल किया गया था. उस वक्त इसे ब्रिटिश इंडियन आर्मी कहा गया. आजादी के बाद इसे ही नेशनल आर्मी कहा गया.

आजादी के बाद भी 1949 तक ब्रिटिश सेना के अधिकारी ही आर्मी चीफ के पद पर तैनात रहे. आजादी हासिल करने के करीब डेढ़ बरस बाद 15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने ब्रिटिश अधिकारी से भारतीय थलसेना का प्रभार लिया था.

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