संपादकीय : वर्षों के संघर्षों की देन है अंबिकापुर-नई दिल्ली ट्रेन

सरगुजा में रेल विस्तार की योजना अथवा रेल सुविधा की दिशा में 14 जुलाई का विशेष महत्व रहेगा। यह विशेष महत्व केवल इसलिये नहीं है कि अम्बिकापुर से नई दिल्ली के लिये ट्रेन की शुरूआत हो रही है। बल्कि सबसे बड़ी बात यह है कि ये एक बहुप्रतिक्षित मांग थी, जो कई दशक बाद पुरी हो रही है। हालांकि अभी भी अम्बिकापुर से नई दिल्ली ट्रेन के नियमित चलने को लेकर संशय है, क्योंकि रेल्वे द्वारा जारी आदेश में ट्रेन ऑन डिमांड अर्थात टीओडी बताया गया है। फिलहाल सप्ताह में एक दिन अम्बिकापुर से निजामुद्दीन एवं निजामुद्दीन से अम्बिकापुर चलने की घोषणा हुई है। जिसकी औपचारिक शुरूआत 14 जुलाई को अम्बिकापुर रेल्वे स्टेशन से होनी है। सरगुजा जिला जो कि खनिज संपदाओं से भरा पड़ा है, जहां के खनिज संपदाओं का लगातार दोहन होता रहा है। इसके बावजुद रेल सेवा को लेकर रेल मंत्रालय अथवा भारत सरकार ने सरगुजा संभाग में रेल्वे के विस्तार को लेकर काफी कम कार्य किया है। देश में चाहे जिसकी भी सरकार रही हो केवल सर्वे, निरिक्षण एवं घोषणा तक ही बात पिछले कई दशक से लंबित थी। हालांकि इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता की अम्बिकापुर में रेल लाईन का विस्तार एवं अम्बिकापुर को रेल की सुविधा भाजपा के कार्यकाल में ही मिली है। पूर्व में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व काल में अम्बिकापुर को रेल सेवा से जोड़ा गया और यहां के चिरपरिचित सांसद लरंग साय का इसमें काफी योगदान रहा है।

लरंग साय के नाम पर चलती थी दिल्ली के लिये स्पेशल बोगी:-

इतना ही नहीं ठेठ सरगुजिहा अंदाज एवं सादगी के लिये क्षेत्र में जाने पहचाने जाने वाले क्षेत्र के सांसद लरंग साय के प्रयास से ही दिल्ली के लिये लरंग साय बोगी भी विश्रामपुर से चली, जो कि लगभग 21-22 वर्षों तक चलती रही। 1978 से लेकर लगभग 2000 तक चली। विश्रामपुर से अनूपपुर तक जाने वाली ट्रेन में लरंग साय नाम से ट्रेन की बोगी जुड़ा करती थी और अनूपपुर में वह बोगी सीधे नई दिल्ली जाने वाली ट्रेन से जुड़ जाया करती थी। 1999-2000 के आसपास जब रेलवे के बोगियों को अपग्रेड किया गया तो उन्हें जोड़ने में दिक्कत होने लगी, जिसके बाद यह सुविधा सरगुजा संभाग के लोगों को मिलनी बंद हो गई।
अब 22 सालों बाद फिर से भाजपा के ही सांसद रेणुका सिंह के कार्यकाल में केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार द्वारा वर्षों की मांग को पुरा करने का निर्णय लिया है। हालांकि इसकी घोषणा कई बार की गई और कई बार कार्यक्रम रद्द भी हुआ। किन्तु 14 जुलाई 2022 को अम्बिकापुर के इतिहास में नई दिल्ली तक ट्रेन सेवा की सुविधा जुड़ जायेगी।

सरगुजा संभाग में रेल्वे के विस्तार को लेकर लम्बे समय से है मांग:-

सरगुजा संभाग के खनिज का दोहन लम्बे समय से चला आ रहा है, जिसे देखते हुए क्षेत्र के लोगों का काफी लम्बे समय से रेल सेवा विस्तार को लेकर संघर्ष एवं प्रदर्शन होता रहा है। रेल्वे संघर्ष समिति के बैनर तले क्षेत्र में कई दशकों से विभिन्न रेल सेवा विस्तार की मांग उठती रही है। सबसे प्रमुख मांगों में अम्बिकापुर से नई दिल्ली तक रेल सेवा के साथ-साथ। बरवाडिह रेल लाईन विस्तार की मांग कई दशकों से बहुप्रतिक्षित है। सरगुजा रियासतकाल में आज़ादी के बाद 24 अक्टूबर 1947 दशहरा दरबार में महाराजा द्वारा दिये गये भाषण में भी यह अंश मिलता है कि गर्वमेंट ऑफ इण्डिया के रेल्वे बोर्ड ने इस रेल्वे लाईन को बनाने की स्वीकृति दे दी है, जो पलामू जिले के ई.आई.रेल्वे के बरवाडीह स्टेशन से निकल कर सरगुजा से गुजरती हुई कोरिया स्टेट के बी.एन.आर. के चिरमिरी स्टेशन से मिलेगी। 1947 से पूर्व स्वीकृति एवं सर्वे के साथ-साथ पलामू से सरगुजा संभाग के कई क्षेत्रों में कुछ कार्य होने के बावजुद यह अचानक से बंद हो गया और अब तक यह योजना बंद पड़ी हुई है। हालांकि समय-समय पर कभी कांग्रेस के यूपीए सरकार के दौरान तो कभी नरेन्द्र मोदी सरकार में इसके लिये बजट़ जारी करने, सर्वें कराने सहित कई चर्चायें चलती रहीं, क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने इस पर अपने-अपने हिसाब से श्रेय भी लेने की कोशिश की किन्तु यह बहुप्रतिक्षित मांग आज भी जस की तस पड़ी हुई है।
हालांकि बरवाडीह रेल परियोजना को लेकर सरकार ने सदन में बता दिया है कि यह काफी खर्चीली योजना है। इस पर अभी काम कर पाना मुश्किल है। भविष्य में यदि कुछ हो तो अलग बात है, इससे इतर झारसुगुड़ा रेल परियोजना पर कार्य की उम्मीद है, इस पर रेल मंत्रालय गंभीर भी है।

जरूरी है कोरबा से अम्बिकापुर, अम्बिकापुर से रेनुकूट रेल मार्ग में कनेक्टिविटी :-

हालांकि आज भी काफी लोग बरवाडीह रेल परियोजना को लेकर बात करते हैं, किन्तु यदि दूसरी ओर सरगुजा से रेल कनेक्टिविटी की बात करें तो अम्बिकापुर से रेनुकूट रूट बेहद जरूरी दिखता है। इस रूट के जुड़ जाने से अम्बिकापुर से नई दिल्ली की दूरी लगभग 1045 किमी होगी और 15 घंटे में तय हो सकती है साथ ही यह रूट कम खर्च में तैयार की जा सकती है। अम्बिकापुर से रेनुकूट की दूरी लगभग 146 किमी की है जिसमें 1347 करोड़ के आसपास राशि खर्च होने का अनुमान है। जबकि यदि भटगांव से रेनुकट को जोड़ा जाता है तो दूरी लगभग 103 किमी के आसपास होगी और 1000 करोड़ के आसपास खर्च का अनुमान है। वहीं दूसरी ओर यदि उदयपुर के परसा से कटघोरा को कोरबा से कनेक्ट कर दिया गया तो मात्र 70 किमी के रेल लाईन विस्तार से अंबिकापुर से रायपुर की दूरी 5 घंटे में तय कर ली जायेगी।


हालांकि अम्बिकापुर से रेनुकूट को जोड़ने पर रेल मंत्रालय विचार कर रहा है, रेल मंत्रालय के सर्वे के अनुसार इस पर ट्रेन चलने से रेट ऑफ रिटर्न 4.46℅ का अंदाजा है, जबकि रेलवे के गाईड लाईन के अनुसार 4℅ आरओआर अच्छा माना जाता है। जबकि इसी रूट को रेनुकूट से सिंगरौली होते हुए जोड़ने पर 14% रेट ऑफ रिटर्न का अंदाजा है, जो कि रेलवे के लिए काफी अच्छी होगी। इसलिए भविष्य में अम्बिकापुर से रेनुकूट रूट जुड़ने की संभावना काफी अच्छी है।
इस पर रेल मंत्रालय अम्बिकापुर से भटगांव-प्रतापपुर-वाड्रफनगर-रेनुकूट रूट पर भी सर्वे करवा रहा है। जिस हिसाब से अम्बिकापुर से रेनुकूट को लेकर अलग-अलग रूट प्लान एवं सर्वे हुए हैं और हो रहे हैं उससे अंदेशा है कि रेनुकूट से अम्बिकापुर की कनेक्टिविटी कुछ सालों में मिल सकती है। वहीं अम्बिकापुर को टर्मिनल बनाये जाने को लेकर भी योजना है।

जनप्रतिनिधियों ने लगातार रेल सुविधा विस्तार की रखी मांग:-
इसके पूर्व के सांसदों, विधायकों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी समय-समय पर सरगुजा के विभिन्न क्षेत्रों में रेल विस्तार एवं रेल सुविधा के बढ़ोतरी हेतु भारत सरकार को पत्र लिखा है। हाल ही दिवंगत हुए सरगुजा क्षेत्र के पूर्व सांसद स्व. चक्रधारी सिंह ने भी 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिख कर विश्रामपुर से अम्बिकापुर तक रेल लाईन का विस्तार की मांग रखी थी। वहीं राज्यसभा सदस्य रहे स्व. पी.के. प्रजापति ने भी अम्बिकापुर, सरगुजा से बलरामपुर होते हुए बरवाडिह रेल लाईन की मांग रेल मंत्रालय से की थी। इसके साथ-साथ जो भी क्षेत्र से सांसद, विधायक एवं मंत्री बने सभी ने अपने-अपने दौर में रेल मंत्रालय को पत्र लिख कर रेल लाईन विस्तार सहित अम्बिकापुर को नई दिल्ली से जोड़ने सहित बरवाडिह रेल लाईन, रेनुकुट रेल लाईन की मांग की।

सांसद रहते खेलसाय सिंह ने भी अम्बिकापुर से नई दिल्ली तक ट्रेन सेवा सहित अन्य मांगे रखी थीं, जिसमें दूसरी मांगों पर तो विचार करने की बात हुई, किन्तु अम्बिकापुर के लिए रेलवे टिकट काउंटर की शुरुआत उनके संसदीय कार्यकाल की ही देन है। पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम ने भी कई बार इसे लेकर सदन में अपना व्यक्तव्य सहित पत्र भी लिखा। वहीं तत्कालीन सांसद रेणुका सिंह का प्रयास भी इसके लिये अहम है। वहीं समय-समय पर अम्बिकापुर से विधायक एवं छत्तीसगढ़ सरकार में स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टी.एस.सिंह देव ने भी कई पत्र रेल मंत्री एवं रेल मंत्रालय को लिखा है। इन सबके साथ-साथ यदि किसी का सबसे बड़ा योगदान क्षेत्र में रेल विस्तार को लेकर रहा तो एक तो स्व. लरंग साय और दूसरा सरगुजा रेल संघर्ष समिति जिसके बैनर तले लगातार आंदोलन होते रहे और मांग की जाती रही। समय-समय पर दिल्ली जाकर संघर्ष समिति के लोगों ने रेल मंत्री एवं मंत्रालय से अनुरोध किया तो कभी बिलासपुर पहुंच कर डीआरएम को पत्र सौपा तो जब किसी बड़े रेल्वे अधिकारी का सरगुजा दौरा हुआ तो उन्हें पत्र सौंप कर सरगुजा में रेल सुविधा बढ़ाने एवं विस्तार की मांग रखी।

इनमें सबसे प्रमुख नामों में से एक पूर्व विधायक देवेश्वर सिंह का भी है, जिन्होंने हमेशा से एक ही मांग रखी और वह है रेल सुविधाओं का विस्तार। कोविड के दौर में जब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व विधायक देवेश्वर सिंह को फोन किया तो उनसे भी इन्होंने अम्बिकापुर से नई दिल्ली तक ट्रेन चलाने की मांग सहित बरवाडिह परियोजना पर चर्चा की। रेल सुविधाओं एंव रेल विस्तार की जब भी चर्चा शुरू होती है, पूर्व विधायक देवेश्वर सिंह का नाम भी पूर्व सांसद स्व. लरंग साय जी के साथ जुड़ता है, जिन्होंने लगातार रेल सुविधाओं के लिये संघर्ष किया है। इन सबके साथ-साथ सरगुजा के कई ऐसे आम एवं खास चेहरे हैं जिन्होंने लगातार रेल संघर्ष समिति के बैनर तले सरगुजा को रेल सुविधा एवं रेल लाईन विस्तार की मांग को लेकर संघर्ष किया है।

इन प्रमुख नामों में ललित किशोर मिश्र, सोमराज अग्रवाल, रविन्द्र स्वर्णकार, वेद प्रकाश अग्रवाल, अमरनाथ पांडेय, प्रितपाल सिंह, अशोक सिन्हा, प्रभु नारायण सिंह, जगदीश पांडेय, राजेश मिश्र, डॉ यू.एस. भल्ला, अनंत सिंह, इंद्रदेव नाग, हरिकिशन शर्मा, कौशल मिश्रा जे.पी.श्रीवास्तव, दलजीत सिंह अरोरा, अनिल सिंह कर्नल, संजय अग्रवाल, भारत सिंह सिसोदिया, वंशराज यादव, टीटू मलिक, आशुतोष तिवारी सहित कई नाम हैं जो लगातार रेल संघर्ष समिति के बैनर तले देखे गये, जिन्होंने समय-समय पर इस आंदोलन का नेतृत्व किया, हिस्सा रहे, आवाज उठाई। इनमें से कई दिवंगत हो गये, लेकिन जो आज हैं उन्हें अपने संघर्ष का सुखद परिणाम देखने को मिलेगा।

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