पिछले दरवाजे से संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय में होती है भर्ती, कुलसचिव के रवैये से युवाओं में आक्रोश

अंबिकापुर/अपनी स्थापना के लगभग 10-15 वर्षों में सरगुजा के नामी एज्यूकेशन सेंटर शासकीय संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय में एक भी बार रिक्तियों को भरने का काम नहीं किया गया। दो बार रिक्तियां निकाली गई, लेकिन भर्ती प्रक्रिया एक बार भी पूरी नहीँ हुई, उल्टे बेरोजगारों से 300 से 500 रुपये तक डीडी के नाम पर लेकर यूनिवर्सिटी प्रबंधन डकार गया। बेरोजगार दौड़ते हैं, सवाल उठाते हैं, मंत्रियों नेताओं तक पहुंचते हैं, किन्तु उनकी सुनने वाला यहां कोई नहीं, क्यों की यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ सरकार से नहीं बल्कि अमेरिका या जापान के नियमों कायदों पर चलती है, शायद यही कारण है कि इन नेताओं की सुनवाई यहाँ नहीं होती।

हां कुछ की सुनवाई समय-समय पर होती है जब उन्हें अपने अगल-बगल के कुछ खास किस्म के लोगों को नौकरी दिलानी होती है, तब वे एक इशारे पर ऐसे लोगों को यूनिवर्सिटी में रखवा भी देते हैं, लेकिन उनका क्या, उन जरूरतमंद गरीब बच्चों का क्या? जो किसी तरह स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करते हैं, ऐसे युवा इन नेताओं तक घूमते-घूमते थक जाएंगे, किन्तु नौकरी नहीं मिलती क्यों कि वह कुछ खास किस्म के लोगों के लिए है।


इन सब के ऊपर कई वर्षों से पदस्थ यहां के कर्तव्यविमूढ़ कुल सचिव जो हमेशा नियम कायदे को ताक में रख कर कार्य करने के आदि हो चुके हैं, उनको वहीं करना अच्छा लगता है जैसी नेताओं के निर्देश होते हैं। यहां तयहाँ तक कि सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी भी वे अपने तरीके से तैयार करते हैं, भारत शासन के नियम, कायदे यहां लागू नहीं होते, पिछले दिनों एक आवेदक ने कुल कर्मचारियों की संख्या और दो-तीन सालों में नवीन भर्ती की जानकारी मांगी, महोदय ने घुमा फिरा कर उन्हीं को नियम-कानून का पाठ पढ़ा दिया।

जानकारी नहीं शाइन के दस बहाने हैैं, कुलसचिव साहब इन नवीन भर्ती किये लोगों से एलआईबी रिपोर्टिंग अथवा भारत व राज्य सरकार का कोई खुफिया कार्य कराते हैं, जिससे उनके नाम सामने आने से देश को खतरा हो सकता है। भाजपा के शासनकाल में भाजपा के नजदीकी लोगों को पिछले दरवाजे से नौकरी दिया जाता था और अब कांग्रेस के शासनकाल में उनके। बाकी पढ़े लिखे प्रतिभावान युवा पकोड़ा तलें यह भी तो एक रोजगार ही है और यह न सिर्फ हमारे प्रधानमंत्री जी की सोच है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार भी इसी ढ़र्रे पर आगे बढ़ रही है।

इस देश का सिस्टम भी बड़ा अजीब है, जो दिखा कर, जो बता कर, सपने सजा कर वोट ली जाती है, सरकार में आते ही वह सब गायब हो जाया करता है। खासकर युवाओं को मूर्ख बनाने का काम तो राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारें कर रही हैं, एक ने जिओ का सिम पकड़ा दिया है, जिसे लेकर युवा सीरीज देखने और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में भक्ति करने में मस्त हैं। तो वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में भी सरकारें आती-जाती रहीं हैं जो कभी मोबाईल और लैपटॉप बांट कर युवाओं के भविष्य पर ताला लगाते देखे गये, तो वहीं सुविधा देने के नाम पर स्कूलनुमा बिल्डिंगों में यूनिवर्सिटी संचालित कर दी गई, कॉलेज खोल दिये गए सरकार की साजिश यह रही कि बेहतर एजुकेशन ही मत दो तो नौकरी कहां से मांगेंगे।

फिर भी अपने दम पर हिम्मत कर पढ़ कर बाहर निकल रहे युवाओं की सुनने वाला कोई नहीं है। 2 रुपये किलो गोबर खरीदने के लिए तो सरकार के पास रकम है, किन्तु बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने के नाम पर सरकार के मुखिया चुप हो जाते हैं। जिस गोठान और गोधन योजना की चर्चा विदेशी और देशी अखबारों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में करवाते हैं, उसी मीडिया में एक दिन यह भी छपे की गोठान और गोधन योजना जैसे कार्यक्रम सफेद हाथी साबित हुए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। डॉ साहब की रतनजोत और दाऊ की गोठान योजना दोनों एक जैसी योजनाएं हैं, जिसकी बात तो बहुत की जाती है, लेकिन धरातल पर 100 में 2-4 जगह ही सफल हो पाया है।

सरकार, जनप्रतिनिधियों, बुद्धिजीवी लोग और हमारे युवाओं की जागरूकता भी कमाल की है, राज्य में हर संभाग में पिछली सरकार ने जो भाजपा की थी, उनके द्वारा स्कूलों के तर्ज पर विश्वविद्यालय और कॉलेज खोल दिये गए। स्टॉफ न हो कोई बात नहीं, बिल्डिंग न हो कोई बात नहीं, परीक्षायें समय पर हो ना हो कोई बात नहीं, विश्वविद्यालय में सालों से भर्ती हो या न हो कोई बात नहीं, किन्तु सरकार के आंकड़े और उपलब्धि में यह जरूर जुड़ना चाहिए कि कितने विश्वविद्यालय और कॉलेज खोले गये। ये हालात है एक ऐसे प्रदेश की जहां चने-मुर्रे के ठेले की तर्ज पर यूनिवर्सिटी खोल दी गई है।

भाजपा ने यूनिवर्सिटी खोला, कांग्रेस जो कि रोजगार देने का ढिंढोरा पिट कर आयी थी, उसने रोजगार के नाम पर यूनिवर्सिटी में पिछले ढाई साल में भर्ती का एक विज्ञापन तक नहीं निकाला। हाँ लगभग दो दर्जन के आसपास भर्तियां भी हुई हैं, किन्तु वे शासन और सत्ता के इशारों पर दबाव बना कर अपनी मनमानी करते हुए, हां यह डेली वेजेज नौकरी ही है, लेकिन अपने नजदीकियों को खुश करने कई लोगों को पिछली दरवाजे से विश्वविद्यालय में घुसा दिया गया है, जो दैनिक वेतनभत्ते पर कार्यरत हैं। यह सच्चाई है उस प्रदेश की जहां पर दाऊ नित्य नये आयाम रचने का दावा करते हैं, लेकिन उसी प्रदेश में नौकरी की आस लिए युवा विश्वविद्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी वहां सुनने वाला कोई नहीं है। सुनी उसकी जाती है जिसके लिए कुछ विशेष जगहों से चुटके में नाम आते हैं।

खैर यह तो अब की नयी नौकरी की बात है, लेकिन यहां वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों का भविष्य भी ख़तरे में है, क्यों कि 100 से अधिक पूर्व कर्मचारी भी संविदा या दैनिक वेतनभोगी के रूप में कार्यरत हैं, उन्हें नियमित करने को लेकर न तो विश्वविद्यालय के पास कोई कार्ययोजना है और न ही कोई प्रयास। जनप्रतिनिधियों की तो पूछिये ही मत वो तो जैसे कसमें खाये बैठे हैं अपने यहां के युवा डेली वेजेज कर्मचारी के रूप में ही मरें, 8 से 10 हजार की नौकरी में मरें, इससे इनका क्या जाता है, कहने को तो जिले और संभाग में सैकड़ों की संख्या में एक से एक तीसमारखाँ जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी है, लेकिन जैसे ही युवाओं की बात आती है वे मौन हो जाते हैं। उनकी बोलती बंद हो जाती है। अरे! नौकरी देना उनका काम थोड़े है वे तो बस वोट लेते हैं और बदले में मुस्कुराहट देते हैं।

शिक्षा की स्थिति यह है कि इस विश्वविद्यालय से पढ़ने वाले छात्र लगातार परेशान होते रहते हैं, कई-कई बार एक कक्षा के एक ही कॉलेज के पूरे-पूरे छात्र एक ही विषय में फेल कर दिए जाते हैं और जब छात्रों का आक्रोश बढ़ता है, वे पुनः गणना का फार्म भरवा उन्हें पास भी कर देते हैं, यह इस यूनिवर्सिटी की बड़ी उपलब्धि है, जिससे छात्र लगातार परेशान रहते हैं। छात्र, बेरोजगार, कर्मचारी जब सब परेशान हैं तो विश्वविद्यालय से खुश कौन है?

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