जानिए क्यों मनाया जाता है मकर संक्राति का पर्व || क्या है इसके पीछे की कहानी ?

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं. एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है. वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं. मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नानए दान और पुण्य के शुभ समय का विशेष महत्व है.

इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है..एक पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव को उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे… कारण सूर्य देव ने शनि देव और उनकी मां छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि और उनकी मां ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया


पिता को कुष्ठ रोग में पीड़ित देख यमराज ने तपस्या की..यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए…लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर ‘कुंभ’ (शनि देव की राशि) को जला दिया..इससे दोनों को बहुत कष्ट हुआ। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को समझाया…यमराज की बात मान सूर्य देव शनि से मिलने उनके घर पहुंचे…कुंभ में आग लगाने के बाद वहां सब कुछ जल गया था, सिवाय काले तिल के अलावाइसीलिए शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा काले तिल से की..

इसके बाद सूर्य देव ने शनि को उनका दूसरा घर ‘मकर’ दिया…मान्यता है कि शनि देव को तिल की वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई, तभी से मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा के साथ तिल का बड़ा महत्व माना जाता है इसलिए मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड़ और तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है. इसके बाद दान संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है. ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है. जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं.


यह पर्व अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. इस दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है. कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है. तो सूर्य देव की पूजा अर्चना के साथ इस पर्व को मनाए और तिल खामा ना भूलें

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *