सरगुजा : भाजपा की कार्यकारिणी से चुप्पी क्यों?

अंबिकापुर/सरगुजा जिला भाजपा की कार्यकारिणी जारी होने के बाद अंदरखाने कई तरह के चर्चे चल रहे हैं। इनमें कार्यकारिणी को लेकर विरोध ज्यादा है, समर्थन में कम लोग हैं। आज नहीं तो कल जब गुस्सा फूटेगा, इसे सम्हाल पाना आसान नहीं होगा। संगठन के डंडे की डर ने लोगों का मुंह बंद रखा है, किन्तु यह कब तक रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। सबसे पहले तो सरगुजा अध्यक्ष के चयन को लेकर ही पार्टी के अंदर बवाल था, किन्तु उसे किसी तरह से नेताओं ने पचाने की कोशिश की, किन्तु जिला कार्यकारिणी के गठन ने सबको अचरज में डाल दिया है।

एक ओर विपक्ष की राजनीति के लिए एक उग्र चेहरा अध्यक्ष के लिए सबकी मांग थी, जिस पर अध्यक्ष ललन प्रताप सिंह के नाम पर मोहर लगा कर प्रदेश संगठन ने पहले ही उम्मीद पर पानी फेर दिया था, सबकी निगाहें जिला कार्यकारिणी पर थी, जिससे उम्मीद थी सत्ता पक्ष को जवाब देने लायक होगी, जिनमें ऊर्जावान, अनुभवी और उग्र चेहरों को वरीयता दी जायेगी, किन्तु कार्यकारिणी नेताओं के उम्मीद से उल्टी घोषित हो गई, जिससे भाजपा के कई बड़े नेता सकते में हैं। संगठन के डर के कारण कोई भी कुछ बोलना नहीं चाहता, किन्तु अंदर ही अंदर पार्टी के फैसले से नाराज़ है। कुछ लोगों ने फेसबुक पर भी लिखकर इसके प्रति नाराज़गी जतायी है।

एक ओर जहां 21 की कार्यकारिणी में 22 चेहरे हैं, जो पार्टी के संविधान के विपरित हैं। तो वहीं दूसरी ओर राजनीति में अनुभवी और खासकर चुनावी राजनीति में विजेताओं की बात करें तो कुल मिलाकर हथेली के पांच अंगुली के बराबर इनकी संख्या बैठती है। जिसमें एक तो स्वयं जिलाध्यक्ष ललन प्रताप सिंह हैं, जो पार्षद का चुनाव जीत कर तत्कालीन जिलाध्यक्ष स्व. रवि शंकर त्रिपाठी के प्रभाव से निगम में सभापति बने थे, इसके बाद पार्षद चुनाव ये हार भी चुके हैं।

वहीं दूसरी बड़ी अनुभवी एवं चुनावी राजनीति से निकल कर बड़ा नाम एवं जनप्रतिनिधि के तौर पर सेवा देने का अनुभव श्रीमती मंजूषा भगत के पास है, जो अब तक पार्षद चुनाव जीतती रहीं हैं। वहीं महापौर के सीधे निर्वाचन में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इन दो नाम के अलावे, कोई भी कार्यकारिणी का सदस्य बड़ा चेहरा नहीं है, जिसने जनप्रतिनिधि के तौर पर चुनावी राजनीति से निकल कर जन सेवा किया हो, अथवा बड़ा राजनीति अनुभव हो।

तीसरा नाम विनोद हर्ष का है जो उदयपुर ब्लॉक से राजनीति करते हैं, पंच व उप सरपंच के तौर पर चुनावी राजनीति का अनुभव रहा है। क्षेत्र में विवाद भी इनका पीछा नहीं छोड़ता, कई बार आमजनों के विरोध का सामना भी करना पड़ता है। चौथा नाम देवनाथ सिंह पैकरा का है, जो सरपंच रह चुके हैं और इन पर भी कई बड़े आरोप लग चुके हैं, कानूनी कार्यवाही का सामना भी करना पड़ा है, वर्तमान में इनकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं। पांचवा नाम सिमा मिंज का है, जो मैनपाट ब्लॉक से तालुक्क रखती हैं और जनपद सदस्य हैं।

इन पांच चेहरों के अलावे कोई भी ऐसा चेहरा भाजपा सरगुजा की कार्यकारिणी में नहीं है, जो लगातार तीन विधानसभा कार्यकाल से तीन में तीन सीट हारती भाजपा को चुनाव जीतने का मंत्र दे सकें। कार्यकारिणी के कई लोगों ने चुनाव तो लड़ा है, किन्तु जीत कोसो दूर रही है, खुद के वार्ड में पार्षद का चुनाव हारे तो कहीं बीडीसी के चुनाव में 50 वोट भी भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में हासिल नहीं कर पाये। अब ऐसे चेहरों और चुनावी राजनीति में जीरो लोगों के दम पर भाजपा अगला विधानसभा जीतने की तैयारी कर रही है।

वहीं कार्यकारिणी केे केे कई चेहरे ऐसे हैंं, जो काफी विवादित रहेे हैै। जिस मोदी-शाह के युग में भाजपा को केवल जीतने की आदत हो, वहां पर हारे हुए घोड़ों से रेस जीतने की तैयारी समझ से परे है। ऐसा लगता है सरगुजा की भाजपा मोदी-शाह युग वाली नहीं है, बल्कि पुनः हासिये पर चली गई है।

जिस सरगुजा में लोकसभा चुनाव को यदि अपवाद रूप में किनारे रख दें तो बाकी के सभी चुनावों में भाजपा की स्थिति दिनों-दिन खराब होती गई है, जिस सरगुजा में कांग्रेस के पास दो-दो वरिष्ठ मंत्री हों, जहां से कांग्रेस के चार चेहरे आयोग में हों, उस सरगुजा में भाजपा विपक्ष की भूमिका का सशक्त रूप से सामना कर पाने की स्थिति में दिखाई नहीं देती है।

ये वहीं सरगुजा है जहां पर जनपद पंचायत में भाजपा समर्थित सदस्य चुनाव में नहीं मिलते और काँग्रेस सभी विजेताओं को अपना बता देती है। हालांकि इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि जनपद के पिछले कार्यकाल में भी भाजपा विपक्ष की भूमिका में कहीं नहीं थी, इसके बावजूद काँग्रेस समर्थित जनपद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को अपने खेमे में ले जाने में सफल हुई। किन्तु इसके बावजूद इस पंचायत चुनाव में कुछ खास नहीं कर पायी। फिलहाल भाजपा में प्रदेश स्तर पर भी जो स्थिति है, वह यही बयां कर रही है कि यह भाजपा मोदी और शाह के युग से अलग है, तभी तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह अपने हिसाब से पूरा पत्ता चल रहे हैं।

किंतु पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने चर्चा में कहा कि यह भूल जाइये की चुनाव के दौर में इनके बल पर भाजपा विधानसभा लड़ेगी। यह तो अभी केवल पार्टी को किसी तरह पैसे वाले लोगों के बल पर चलाने का एक पैंतरा है, ताकि पार्टी रुपये-पैसे के अभाव में कमजोर न हो, भले दिखावटी ही सही अपनी सशक्त उपस्थिति छत्तीसगढ़ में दिखाती रहे।

विधानसभा चुनाव के पूर्व एक बार भाजपा छत्तीसगढ़ में बड़ी उलट फेर करेगी और यह ठीक वैसा ही होगा, जैसा लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था, प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और पूर्व मुख्यमंत्री के चाहते हुए भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के कहने पर भाजपा छत्तीसगढ़ के प्रभारी को बीच बैठक से उठ कर मीडिया में यह जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ी की भाजपा अपने सभी सांसदों के टिकट काट रही है और नये चेहरे चुनाव लड़ेंगे, यह ऐसा फैसला था, जिसके लिए प्रदेश संगठन तैयार नहीं था, लगभग 50% टिकट ही कटने वाले थे, किन्तु दिल्ली के फैसले ने भारी उलट-फेर किया, जिसका चुनाव के परिणाम पर काफी असर हुआ और सरकार रहते छत्तीसगढ़ में कांग्रेस लोकसभा में कुछ खास नहीं कर पायी। विधानसभा के पूर्व छत्तीसगढ़ में ऐसा ही कुछ भाजपा में फिर से होगा, अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री का चेहरा तक बदला जा सकता है।

ऐसे में भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं को यही आस है कि लगातार तीन चुनावों में सरगुजा की पूरी विधानसभा लूटाने वाली भाजपा, अब कोई सबक ले लें और चुनाव के पहले सशक्त टीम मैदान में उतारेगी जो सत्तासीन कांग्रेस को जवाब देने के लायक होगी।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *