जल संरक्षण का त्यौहार है गंगा दशहरा

अंबिकापुर। भारत में गंगा, गोदावरी, यमुना, सरस्वती, ब्रम्हपुत्र आदि महत्वपूर्ण नदियां हैं, जिन्हें प्राणदायनी माना जाता है। इनमें देव नदी गंगा भारतीयों के जीवन में धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। इसी से जुड़ा है गंगा दशहरा का पर्व और दशहरा मेला।
सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा पर्व बिल्कुल ही अनूठे ढंग से मनाया जाता है। इस अवसर पर यहां पांच दिनों तक मेला लगता है। यह पर्व यहां की लोक संस्कृति को समझने में सहायक है। गंगा दशहरा के संदर्भ में अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि गंगा की उत्पत्ति राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कठोर तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था। शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को गंगा, पृथ्वी लोक में अवतरित हुई थीं इसलिए इस दिन गंगा दशहरा का पर्व, देवी गंगा को समर्पित त्योहार के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरे के दिन से वर्षा का आगमन होने लगता है और दसों दिशाओं में हरियाली छाने लगती है। इस दिन वर्षा आगमन का स्वागत करते हुए खुशियां जाहिर की जाती हैं। छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। सरगुजा वासियों की मान्यता है कि गंगा दशहरे के दिन पुरइन (कमल) के पत्ते से युक्त जलाशय में गंगा विराजती है, इसलिए इसी जलाशय को गंगा तुल्य मानकर इसकी पूजा-अर्चना की जाती है।
गंगा दशहरा के मौके पर कठपुतली विवाह की परंपरा प्राचीन
कठपुतली का मंचन, प्राचीन मनोरंजक कार्यक्रमों में से एक है। सरगुजा अंचल में भी गंगा दशहरा के अवसर पर कठपुतली विवाह करने की प्रथा प्राचीन समय से है, जिसमें लकड़ी (काष्ठ) से गुड्डे-गुडिय़ा बनाए जाते हैं और उनका विवाह संपन्न कराया जाता है। सरगुजा अंचल में प्रति वर्ष जेठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के अवसर पर गांव की कुंवारी लड़कियां घर वालों के सहयोग से कठपुतली का विवाह करती हैं। लकड़ी के गुड्डा-गुड्डी बनाकर तीन दिनों तक विवाह के सभी रस्मों का पालन करते हुए कठपुतली विवाह का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में घर के बड़े-बुजुर्ग विवाह के सभी रस्मों (मंडप गाड़ने से विदाई तक) को बताने में सहयोग करते हैं। गांव की कुंवारी लड़कियां गुड्डे-गुड्डी की मां और लड़के, पिता की भूमिका अदा करते हैं। इस आयोजन का उद्देश्य घर के बच्चों को विवाह संस्कार की जानकारी देना और मनोरंजन करना है। कठपुतली विवाह के उपरांत गंगा दशहरा के दिन इन कठपुतलियों को जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है।

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