क्या आरएसएस-भाजपा इतनी आसानी से भूल जायेंगे कृषि कानून?

तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का केंद्र सरकार का ऐलान,

राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की घोषणा,

इस फैसले के केंद्र बिंदू में माना जा रहा है पंजाब -यूपी का चुनाव

नई दिल्ली/9 अगस्त 2020 से शुरू हुआ, किसान आंदोलन अब शायद जल्द ही समाप्त हो जाये, सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद किसानों का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ। सरकार ने इस आंदोलन को गलत बताने और अपने द्वारा बनाये गये कृषि बिल को देशहित में बताने कई कोशिशें की, लेकिन सरकार हर पहल एवं कोशिशों में नाकाम रही। इस आंदोलन ने यह बताया, एकजुटता से किया गया प्रयास आज नहीं तो कल सफल होना ही है, अंततः सरकार झुकी और उसने अपने द्वारा बनाये गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी सार्वजनिक घोषणा की। हालांकि प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद भी किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि “हम अपना आंदोलन अभी समाप्त नहीं कर रहे हैं, हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब सरकार संसद में इसे रद्द करेगी।”


केंद्र सरकार के इस फैसले को पंजाब एवं यूपी जैसे बड़े राज्यों में होने वाले चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है, राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि यूपी और पंजाब दोनों ही राज्यों में किसानों की संख्या काफी अधिक है और भाजपा सरकार इन राज्यों में जीत हासिल करने कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। आरएसएस और भाजपा द्वारा राज्यों में कराये गये अंदरूनी सर्वे में यह बात निकल कर सामने आयी थी कि किसान तीनों कृषि कानूनों को लेकर खासे नाराज़ हैं और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विरोध में वोटिंग कर सकते हैं, वहीं पंजाब में भाजपा का पुराना मित्र अकाली दल भी उनसे नाराज़ चल रहा था और उसके सांसद ने कृषि कानूनों को लेकर केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर किसानों के आंदोलन को समर्थन दिया था। पीएम नरेंद्र मोदी के इस घोषणा को कई चीजों से जोड़कर देखा जा रहा है, एक ओर राजनैतिक मित्र पंजाब में अकाली दल को चुनाव से पहले अपने साथ लाने एवं यूपी में किसान नेताओं का समर्थन हासिल करने की भी यह कवायद है। ऐसा अनुमान है कि पीएम नरेंद्र मोदी के घोषणा के बाद शीतकालीन सत्र में संभवतः सरकार सदन में भी कृषि के तीनों कानून को रद्द कर सकती है।अंततः तीन कृषि कानूनों के भारी विरोध के बाद मोदी सरकार ने इसे निरस्त करने का फैसला किया है। इसकी घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है।

वैसे भी देखा जाये तो किसान बिल शुरू से ही संदेहास्पद था। जिसे लेकर काफी हो हल्ला मचा था, सरकार पहले तो संविधान के लूपहोल का फ़ायदा उठाकर पिछले दरवाज़े से इस पर ऑर्डिनेन्स लेकर आयी, फिर राज्यसभा में मतदान के बजाय ध्वनिमत से इसे पास करा दिया जो कहीं न कहीं असंवैधानिक था, वहीं इन तीनों कृषि बिल पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा इसके संवैधानिकता पर निर्णय करने की बजाय छह महीने का स्टे दे दिया गया, जो ग़लत था। इस पर फिर उच्चतम न्यायालय की कमेटी गठित हुई जो बहुत ज्यादा कुछ कर भी नहीं पायी। इस प्रकार देखा जाये तो इन तीनों कृषि कानूनों की पूरी प्रक्रिया ही कहीं न कहीं सवाल के घेरे में थी। इसके बाद जब इसे लेकर अलग-अलग स्तर पर विरोध शुरू हुआ, किसानों ने आंदोलन शुरू किया, इस आंदोलन में लगभग 700 के आसपास किसानों की मृत्यु हुई, देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कृषि कानून के विरोध में कई प्रदर्शन हुए, कई जगह किसानों को पीटा गया, कई जगह जब विरोध के दौरान मामला ज्यादा बढ़ा तो हत्यायें भी हुई, लाल किला में क्या हुआ अब तक स्पष्ट नहीं है। इस तरह से देखा जाये तो सरकार के एक जिद्द ने कई लोगों की जान ले ली, इससे कई घटनाएं घटी और अंत में इसका नतीजा क्या निकला, अंततः सरकार ने कृषि बिल वापस लेने की घोषणा कर दी।

भले ही किसान संगठन, अन्य राजनीतिक दल इसे किसानों की जीत और सरकार के जिद्द की हार बता रहे हैं और खुश हो रहे हैं। किंतु यदि नरेंद्र मोदी के गुजरात एवं केंद्र के कार्यकाल का अध्ययन करेंगे तो यह बात साफ हो जायेगी की मोदी पैर पीछे खींचने वालों में से नहीं हैं। कहीं न कहीं संगठन स्तर पर, भाजपा एवं आरएसएस में इन कृषि कानूनों को लेकर आगे चुनाव के बाद कुछ न कुछ होना जरूर है। क्यों कि भाजपा संगठनात्मक पार्टी है जहां पर संगठन का फैसला सर्वोपरि है और ऐसे में यह भी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एक साल से अधिक समय से चल रहे एक किसान आंदोलन को समाप्त कर, उनकी एकजुटता को समाप्त कर देना भी एक मुख्य वजह रहा है, जब तक यह एकजुटता नहीं टूटती इस मामले में दूसरे स्तर पर भाजपा को काम करने का मौका भी नहीं मिलता। अब आने वाले समय में एकबार फिर से इन कृषि कानूनों की मांग उठे और अबकी बार यह किसानों के बीच से ही निकले तो शायद कोई कुछ कर भी न पाये। भाजपा और आरएसएस दोनों अब समय चाहते एक तो चुनाव का और दूसरा किसानों के बीच काम करने का, कुछ समय चाहिए एक फील्ड तैयार करने का जिसके जरिये वे इस कृषि कानून को पुनः स्थापित कर सकें। अभी भाजपा और आरएसएस का टारगेट है यूपी और पंजाब, लेकिन भविष्य में भाजपा इस कानून को भूल जायेगी यदि यह कहा जाये तो यह उनकी संगठनात्मक क्षमता और लोगों के बीच कार्य करने के तरीके को लेकर गलत अंदेशा है। भाजपा-आरएसएस अब किसानों के बीच इसकी रूप रेखा तैयार कर आगे बढ़ेगी इसकी पूरी संभावना है, ताकि आने वाले समय में ऐसे विरोधों से बच सके और अपने फैसले को सही साबित करने का एक पूरा रोड मैप तरीके से तैयार कर सके।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *