‘किशनु‘ ने मत्स्य पालन से संवारी जीवन की डगर

कोण्डागांव/जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर स्थित ग्राम बोरगांव के 34 वर्षीय किशनु साहा की एक आम कृषक से एक सफल मत्स्य पालक होने की यात्रा चुनौतीपूर्ण रही और आज वे इस व्यवसाय की बदौलत प्रतिमाह लगभग 30 हजार रूपये की आमदनी अर्जित कर रहे हैं। किशनु ने मत्स्य पालन के व्यवसाय को अपनाने के संबंध में बताते हुए कहा कि वे भी पहले एक आम कृषक की तरह लगभग अपने पांच एकड़ की जमीन में धान, मक्का एवं मिर्च, टमाटर की ही खेती करते थे परन्तु पिछले कुछ वर्षों में उन्हें अपेक्षित आमदनी नहीं हो रही थी साथ ही सब्जी इत्यादि फसलों के लिए अधिक से अधिक मजदूरों की भी जरूरत पड़ती थी फलस्वरूप फसलों की लागत निकल पाना भी मुश्किल हो जाता था।

इसके अलावा सब्जी के बाजार भाव में उतार चढ़ाव होने से उनके सहीं मूल्य भी नही मिलते थे। अतः वर्ष 2017-18 में उन्होंने मछली पालन के क्षेत्र में उतरने का फैसला लिया क्योकि मत्स्य पालन में अधिक मजदूरों की आवश्यकता नहीं होती साथ ही इसका बाजार भाव भी संतोषजनक रहता है। इस प्रकार उन्होंने अपने 2.5 एकड़ की जमीन में तालाब खुदवाया। शुरूवात में इस नए व्यवसाय में उन्हें कुछ दिक्कतें भी आई वे बताते हैं कि शुरू-शुरू में उन्हें तालाब के सूखने, मछलियों के मरने और उनकी बढ़ोत्तरी न होने जैसी समस्याएं भी आई परन्तु लगन और इच्छाशक्ति से इसका उन्होंने शीघ्र समाधान निकाला। इस संबंध में मत्स्य विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन से इस प्रकार की समस्याएं कम होने लगी।

चूंकि इस विभाग द्वारा उन्हें तालाब खुदवाने के लिए 50 हजार रूपये का अनुदान दिया गया था वे आज भी विभाग के बराबर सम्पर्क में रहते हैं। उनका यह भी मानना है कि मत्स्य विभाग के मार्गदर्शन में उन्होंने एक सहीं फैसला लिया है वरना वे सीमित भूमि एवं अपर्याप्त आय में ही गुजारा करने के लिए विवश होते और विभाग द्वारा जो सहयोग दिया गया है उसके लिए वे सदैव कृतज्ञ रहेंगे। बारहवीं तक पढ़े किशनु साहा यह भी कहते हैं कि भविष्य में वे पशुपालन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाना चाहेंगे। किशनु ने मत्स्य पालन करने वाले इच्छुक किसानों को सलाह के संबंध में कहा था कि मत्स्य पालन में कुछ मूलभूत जानकारी के बारे में सावधानी रखना बहुत जरूरी है जैसे जिस भूमि में तालाब खुदवाया जा रहा है।

वहां मिट्टी और पानी की जांच करवाना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर पानी सहीं नहीं रहेगा तो मछलियों की बढ़त पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और दूसरा मुद्दा स्थानीय बाजार पर भी निर्भर करता है क्योंकि जिस प्रजाति की मछली की खपत ज्यादा होती है उसी का पालन करना चाहिए साथ ही मत्स्य पालन में आर्थिक पृष्ठभूमि प्रबंधन भी बेहतर होना चाहिए क्योंकि मछलियों के चारे में 75 प्रतिशत का खर्च होता है साथ ही मछलियों के डेटाबेस का रख-रखाव भी करना पड़ेगा क्योंकि उनके चारे, उनके रख-रखाव के खर्चे, मत्स्य बीज की जीविता प्रबंधन के बाद ही हम अपना लाभ और नुकसान को देख सकते हैं। अगर किसान अपने एक एकड़ में मत्स्य फार्म प्रारंभ करते हैं तो जैसे-जैसे मछलियों की खपत होगी तालाब भी बढ़ाना पड़ेगा। इस प्रकार इस व्यवसाय में दो-चार बातों का ध्यान रखा जाये तो यह एक सुरक्षित व्यवसाय है।

किशनु साहा के तालाबों में तेलापिया, रोहू, इण्डियन कार्प, मृगल, कतला, आईएमसी डार्क जैसी प्रजातियों की मछलियों का पालन हो रहा है और इन मछलियों की बिक्री स्थानीय बाजारों के अलावा उड़ीसा राज्य के जिलों में भी होती है। इस कार्य के लिए उन्होंने दो व्यक्तियों को भी अपने मत्स्य फार्म में रोजगार उपलब्ध कराया है। कोण्डागांव जिले में मत्स्य पालन जैसी व्यवसायों के विकास के लिए आपार सम्भावनाएं है क्योंकि वर्तमान दौर में परम्परागत कृषि के अलावा कुछ नये व्यवसायों को भी अपनाने की जरूरत है। इसके लिए जागरूकता, सहीं जानकारी एवं परिस्थितियों के समझने की आवश्यकता है, सहीं भी है कि जब हम जीवन में बदलाव नहीं करेंगे तो कुछ भी नही बदलेगा। किशनु साहा जैसे सफल मत्स्य पालक पर यह उक्ति सटीक बैठती है निश्चित ही उन्होंने बदलाव को अपनाया और इसका साकारात्मक परिणाम उनके जीवन में परिलक्षित हुआ।

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