शानदार राजनीतिक रिकॉर्ड के बावजूद सीएम बनने से क्यों चूके चौधरी बीरेंद्र सिंह?

हरियाणा में 4 दशक की प्रभावशाली राजनीति करने वाले बीरेंद्र सिंह मौजूदा दौर में भी सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं

हरियाणा में four दशक की प्रभावशाली राजनीति करने वाले बीरेंद्र सिंह मौजूदा दौर में भी सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं

हरियाणा में four दशक की प्रभावशाली राजनीति करने वाले बीरेंद्र सिंह मौजूदा दौर में भी सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं

कहते हैं कि हरियाणा में चौधरी बीरेंद्र सिंह जहां से खड़े होते थे वहां भी राजनीति शुरू होती थी। पार्टी नो भी हो जीत की आश्वासन तो चौधरी बीरेंद्र सिंह थे। वे अलग-अलग हिस्सों से एक ही सीट पर चुनाव जीतने का कारनामे कर चुके हैं। हरियाणा की राजनीति में चौधरी बीरेंद्र सिंह की गूंज four दशक तक रही है। लेकिन बीरेंद्र सिंह शानदार राजनीतिक विरासत के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए। सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके चौधरी बीरेंद्र सिंह को ये मल्ल जरूर रहेगा कि आखिर किस ग्रह-दोष की वजह से वे सूबे के सीएम नहीं बन पाए?

हरियाणा में बीरेंद्र सिंह मौजूदा दौर में भी सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से एक मजबूत प्रभाव रखने वाले परिवार से बीरेंद्र सिंह ताल्लुक रखते हैं। वे हरियाणा के प्रख्यात किसान नेता सर छोटू राम के पोते हैं और उनके पिता नेकी राम भी हरियाणा की राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे हैं। बीरेंद्र सिंह ने रोहतक के सरकारी कॉलेज से ग्रैजेट किया और फिर चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की।

उचाना कलां सीट से 5 बार विधायक

वर्ष 1977 में पहली दफे उचाना कलां विधानसभा सीट बनी। चौधरी बीरेंद्र सिंह यहां के पहले विधायक बने। देश भर में इमरजेंसी के कारण कांग्रेस के खिलाफ लहर थी। उस वक्त पूरे हरियाणा में कांग्रेस केवल 5 सीटों पर बमुश्किल ही जीत सकी थी। लेकिन उसी कांग्रेस विरोधी लहर में कांग्रेस के टिकट पर बीरेंद्र सिंह ने बड़े अंतर से जीत हासिल कर चुनाव जीता और वो रातों-रात राजनीति के नए स्टार बन गए।चौधरी बीरेंद्र सिंह उचाना कलां से अबतक 5 बार चुनाव जीत चुके हैं। उचाना कलां विधानसभा सीट की खास बात ये है कि यहां से जीता हुआ विधायक कभी दोबारा चुनाव नहीं जीता है लेकिन सिर्फ बीरेंद्र सिंह ही अपवाद हैं जो कि इस सीट से पांच बार विधायक रहे हैं तो सबसे ज्यादा इस सीट से 7 बार चुनाव भी बीेंद्रेंद्र सिंह ही करेंगे। नौका है। बीरेंद्र सिंह पांच बार 1977, 1982, 1994, 1996 और 2005 में उचाना से विधायक बन चुके हैं और तीन बार हरियाणा सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

तमाम चुनाव साबित करते हैं कि उचाना कलां की राजनीति केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और उनके परिवार के ईर्द-गिर्द घूमती आई है। यहां बीरेंद्र सिंह का इतना मजबूत वोट बैंक रहा है कि ज्यादातर चुनावी बीरेंद्र सिंह या दूसरे पार्टियां ही रहा है। बीरेंद्र सिंह भले ही किसी भी पार्टी में रहें लेकिन जीत उनके ही खाते में आई है।

ओपी चौटाला को हराकर बने सांसद थे

बीरेंद्र सिंह वर्ष 1984 में हिसार लोकसभा क्षेत्र से पहली दफे सांसद बने। उन्होंने इनेलो के ओमप्रकाश चौटाला को हराकर पहली बार सांसद बने थे। वर्ष 2010 में कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा सदस्य मनोनीत हुए। लेकिन कांग्रेस से 42 साल तक जुड़े रहने के बाद बीरेंद्र सिंह 16 अगस्त 2014 में जींद की एक रैली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में शामिल हो गए। जून 2016 में बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। बीरेंद्र सिंह वर्ष 2022 तक राज्यसभा सदस्य हैं।

पत्नी और बेटे ने संभाली राजनीति की कमान संभाली

जींद से उनके बेटे और पूर्व आईएएस अधिकारी बृजेंद्र सिंह ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीता तो साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता की बदौलत बीजेपी पहली बार इस सीट से जीत सकी। प्रेमलता ने इनेलो के उम्मीदवार रहे तत्कालीन सांसद दुष्यंत चौटाला को लैपटॉप दिया था।

बीरेंद्र सिंह ने भविष्य में चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। अब उनका परिवार राजनीति में सक्रिय है। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बीरेंद्र सिंह की ही बदौलत पूरी उम्मीद है कि वो जींद जिले के तहत आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर जीत का परचम लहरा सकेगी।

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