अंबिकापुर। बचपन में मां की मौत…पिता के शराब पीने की लत से परवरिश पर पड़ते असर और गरीबी के कारण भाई-बहनों पर पडऩे वाले आर्थिक बोझ ने 10वीं पास सीता को घर से दूर रहने विवश कर दिया। मां के ममता की छांव से बेखबर सीता इन हालातों के बीच एक दिन ट्रेन में बैठकर अंबिकापुर आ गई। यहां आने के बाद भी वह टे्रन से नहीं उतरी, उस पर ट्रेन के टीसी की नजर पड़ी और वह पूछताछ किया तो उसने बताया कि उसका कोई घर नहीं है। वह बिना टिकट लिए ट्रेन में सफर करते अंबिकापुर तक आ गई है। इसकी जानकारी पुलिस को दी गई और उसे महिला पुलिस ने शहर में एमएसएसव्हीपी के द्वारा संचालित बालिका अल्प आवास गृह में लाया। यहां आने के बाद कुछ दिनों तक वह तनाव में रही। बाद में उसे डिप्रेशन से बाहर निकालने का काम किया अल्प आवास गृह की संचालिका डॉ.मीरा शुक्ला ने, जिन्हें लोग मीरा मां के नाम से पुकारते हैं। उन्होंने न सिर्फ उसे मां के ममता की छांव का एहसास कराया, बल्कि उसे हुनरमंद बनने के लिए प्रेरित किया, जिससे वह कुछ आय अर्जित कर ली।
बढ़ती उम्र के साथ एक मां की तरह चिंता कर डॉ.मीरा शुक्ला ने सीता का घर-परिवार बसाने की सोच बनाई और विवाह को लेकर उसकी इच्छा जानने का प्रयास किया, तो उसने शादी के लिए हामी भर दी। उसकी इच्छा जानने के बाद डॉ.मीरा शुक्ला ने वर की तलाश शुरू की और परिवार से संपन्न, पुट्टी पोताई का काम ठेके पर लेने वाले मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के सिसनेर निवासी मुकेश राजपूत को उसके जीवनसाथी के रूप में चुना, जो लड़की का फोटो देखने के बाद उसे पसंद कर लिया था। अल्प आवास गृह में लगभग सात माह गुजार चुकी सीता ने अंबिकापुर पहुंचे मुकेश को देखा और उसे पसंद करते हुए शादी के लिए हामी भर दी। डॉ.मीरा शुक्ला ने दोनों के परिवार के सदस्यों को बुलाया और वैवाहिक रिश्ते को लेकर किसी प्रकार की आपत्ति न हो इसे जाना। दोनों का सगाई कराने के बाद उन्होंने दो माह का समय सोचने-समझने के लिए दिया ताकि लड़की के बेघर होने जैसी स्थिति भविष्य में न बनने पाए। बाद में दोनों की इच्छा का सम्मान करते हुए इन्हें परिणय सूत्र में बांधकर स्वयं कन्यादान किया।
मीरा मां ने कराया 14वां विवाह
डॉ.मीरा शुक्ला ने सीता सहित अब तक कुल 14 युवतियों के हाथ पीले किए हैं। एमसीबी जिले के पोड़ी थाना क्षेत्र की सीता के विवाह में उन्होंने पांच साड़ी, ज्वेलरी, सहित जरूरी सामान अपनी ओर से दिए। उपस्थित लोगों ने इन्हें उपहार देकर शुभकामनाएं दी। डॉ.मीरा शुक्ला ने बताया कि वे एक बच्ची के कन्यादान में स्वयं का 20 हजार रुपये खर्च करती हैं। सीता के विवाह के साक्षी उसके पिता, भाई-भाभी, चाचा-चाची सहित 17 लोग बने। वर पक्ष से भी परिवार के सदस्य पहुंचे थे, जिन्हें भोजन व स्वल्पाहार कराया गया। बेटी की विदाई की बेला में वो पिता फफकते रो पड़ा, जो शराबी हरकतों के बीच अपनी ही बेटी की सुध नहीं ले रहा था।
इंदौर-बिलासपुर ट्रेन से हुए रवाना
विवाह के बाद वर पक्ष के लोग वधु को लेकर इंदौर-बिलासपुर ट्रेन से रवाना हुए। इसके पूर्व इन्हें डॉ.मीरा शुक्ला ने निजी वाहन से मां महामाया मंदिर पूजार्चना करने के लिए भेजा। उन्होंने सीता को पिछली जिंदगी को भूलकर अच्छे से पति और परिवार के साथ रहने की नसीहत दी। एक और बेटी की विदाई की बेला पर उनके आंखों से आंसू निकल पड़े। उन्होंने बताया सीता ने अल्प अवास गृह में रहते ठोंगा, बैच बनाने का काम सीख लिया था और साड़ी में पीकू-फाल भी कर लेती थी।